पहले दो पदों में प्रकट हो रहे अलंकार और पदों का काव्य सौंदर्य इस प्रकार है।
पहला पद
यह दुःख दगध न जानै कंतू। जोबन जरम करै भसमंतू।
इस पद में ‘दुःख दगध’ तथा ‘जोबन जरम’ में ‘अनुप्रास अलंकार’ है क्योंकि ‘दुःख दगध’ में ‘द’ वर्ण की तथा ‘जोबन जरम’ में ‘ज’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है।
काव्य सौंदर्य : पद की भाषा अवधी है। भाषा प्रवाहमयी और गेयात के गुण से परिपूर्ण है। भाषा सरल एवं सहज है। अपने प्रियतम के वियोग से उत्पन्न विरह से पीड़ित विरहिणी की दशा का वर्णन कवि नें अत्यन्त सुंदर तरीक से किया है।
दूसरा पद
बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि-कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ।
इस पद में ‘कँपि-कँपि’ शब्द में ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार प्रकट हो रहा है। पद की भाषा अवधी है। भाषा प्रवाहमयी और गेयात के गुण से परिपूर्ण है। भाषा सरल एवं सहज है। पूस के मास में ठंड की मार और अपने प्रिय के विरह की दोहरी मार से पीड़ित विरहिणी स्त्री की विरह दशा का सजीव चित्रण कवि ने किया है।
पाठ के बारे में…
यह पाठ मलिक मोहम्मद जायसी की प्रसिद्ध रचना ‘पद्मावत’ के ‘बारहमासा’ पदों से संबंधित है। इस पाठ में बारहमासा पदों में नायिका नागमती के विरह का वर्णन किया गया है। कवि शीत ऋतु में और अगहन और पूस मास में नायिका की विरह दशा का चित्रण किया है।
मलिक मोहम्मद जायसी सोलहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध सूफी कवि थे, जो सूफी प्रेम मार्गी शाखा के कवि थे। उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ‘पद्मावत’ था, जो उन्होंने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के प्रेम प्रसंग पर आधारित करके लिखा था।
संदर्भ पाठ :
मलिक मुहम्मद जायसी, बारहमासा (कक्षा – 12, पाठ – 8, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?
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