निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग।
सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।
व्याख्या : इन पंक्तियों के माध्यम से नायिका नागमती भंवरे तथा कौवे से अपने प्रियतम तक संदेश पहुंचाने के लिए कहती है। वह भंवरे और कौवे से कह रही है कि उसके विरह की अवस्था वे लोग जाकर उसके प्रियतम को बता दें। वह उसके प्रियतम को बताएं कि उनकी प्रियतमा उनके विरह में कितने बड़े दुख भोग रही है। तुम दोनों जाकर कहना कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारे विरह रूपी अग्नि में जलकर मर गई है। उसी अग्नि से उठे हुए काले धुएँ के कारण कि हमारा रंग काला पड़ गया है।
(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।
धिन सारस होई ररि मुई, आइ समेटहु पंख।
व्याख्या : इन पंक्तियों के माध्यम से नागमती अपने विरह की दशा का वर्णन कर रही है। वह अपने प्रियतम को संबोधित करते हुए कहती है कि तुमसे अलग होने के बाद मेरी दशा बहुत ही खराब हो गई है। तुम्हारे वियोग में मैं हर पल रोती रहती हूँ। इससे मेरी आँखों से आँसू नहीं अब रक्त निकलता है। तुम्हारी याद में तड़पते तड़पते मेरा सारा माँस भी गल गया है और मेरी हड्डियां शंख के जैसी सफेद दिखाई दे रही हैं। तुम्हारा नाम लेते-लेते मैं सारसों की जोड़ी के समान तड़प तड़प कर मर रही हूँ, तुम आओ और मेरे पंखों को समेट लो।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराई कै, चहै उड़ावा झोल।।
व्याख्या : इन पंक्तियों में नागमती अपने विरह की दशा का वर्णन करती हुए अपने प्रियतम को पुकारते हुए कहती है कि हे प्रियतम! तुम्हारे वियोग में मैं दिन-प्रतिदिन सूखकर कांटा होती जा रही हूँ। मेरी स्थिति एक तिनके के समान हो गई है। मैं इतनी कमजोर हो गई हूँ कि मेरा शरीर वृक्ष के समान गिरने लगता है। हवा के झोंके मेरे शरीर को उड़ा ले जाते हैं और मैं अपनी कमजोरी के कारण स्वयं को संभाल नहीं पाती हूँ। विरह की यह अग्नि मुझे अंदर ही अंदर जलाई जा रही है और मुझे ऐसा लग रहा है कि विरह की अग्नि मुझे राख बनाने बना कर छोड़ेगी और मेरा बदन राख बन कर हवा में उड़ जाएगा।
(घ) यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होई परौं, कंत धरैं जहँ पाउ।।
व्याख्या : इन पंक्तियों के माध्यम से नागमती अपने मन के दुख को व्यक्त कर रही है और वह कहती है कि मैं अपने तन को विरह की इस अग्नि में जलाकर भस्म कर देना चाहती हूँ। इस तरह मेरा तन जब विरह रूपी अग्नि में जलकर बस होकर राख बन जाएगा। तब यही राख हवा मैं उड़कर मेरे प्रियतम के रास्ते में बिखर जाएगी। इस तरह रास्ते में चलते हुए मैं अपने प्रिय के दर्शन कर पाऊँगी और उनके चरणों को स्पर्श कर पाऊँगी।
पाठ के बारे में…
यह पाठ मलिक मोहम्मद जायसी की प्रसिद्ध रचना ‘पद्मावत’ के ‘बारहमासा’ पदों से संबंधित है। इस पाठ में बारहमासा पदों में नायिका नागमती के विरह का वर्णन किया गया है। कवि शीत ऋतु में और अगहन और पूस मास में नायिका की विरह दशा का चित्रण किया है।
मलिक मोहम्मद जायसी सोलहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध सूफी कवि थे, जो सूफी प्रेम मार्गी शाखा के कवि थे। उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ‘पद्मावत’ था, जो उन्होंने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के प्रेम प्रसंग पर आधारित करके लिखा था।
संदर्भ पाठ :
मलिक मुहम्मद जायसी, बारहमासा (कक्षा – 12, पाठ – 8, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?
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