माघ के महीने में विरहिणी की दशा बहुत कष्टकारी हो जाती है। माघ का महीना ऐसा महीना होता है, जब ठंड अपने उच्चतम स्तर पर होती है। चारों तरफ घना कोहरा छाने लगता है और हस्तियों को कंपकंपाने वाली ठंड अपने अपने पूरे जोर पर होती है। ऐसी स्थिति में अपने प्रिय के विरह में तड़प रही किसी भी विरहिणी की दशा भी कम कष्टकारी नहीं होती।
एक तो माघ के महीने की कंपकंपाने वाली ठंड और दूसरे प्रिय के विरह की मार की दोहरी मार विरहिणी झेलनी पड़ती है। पति की अनुपस्थिति में उसे जानलेवा जान पड़ती है। यदि उसका पति उसके पास होता तो वह इस कंपकपाने वाली ठंड को झेल लेती। लेकिन पति की अनुपस्थिति उसमें काम भावना को जागृत कर रही है और वह अपने प्रियतम से मिलने को व्याकुल हो उठती है। ऐसी स्थिति में विरह की व्याकुलता और माघ मास की ठंड दोहरी मार करते हैं।
नागमती को को वर्षा में भीगे हुए वस्त्र तथा आभूषण भी तीर के समान चुभ रहे हैं। उसे किसी भी तरह का बनाव श्रंगार नहीं भा रहा है, क्योंकि उसके पति उसके पास नहीं है। वह अपने पति के विरह में सूखकर कांटा हो गई है और अब ऐसा लगता है कि वह विरह की अग्नि में इसी प्रकार जलती रही तो उसका शरीर एक दिन राख के समान उड़ जाएगा।
पाठ के बारे में…
यह पाठ मलिक मोहम्मद जायसी की प्रसिद्ध रचना ‘पद्मावत’ के ‘बारहमासा’ पदों से संबंधित है। इस पाठ में बारहमासा पदों में नायिका नागमती के विरह का वर्णन किया गया है। कवि शीत ऋतु में और अगहन और पूस मास में नायिका की विरह दशा का चित्रण किया है।
मलिक मोहम्मद जायसी सोलहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध सूफी कवि थे, जो सूफी प्रेम मार्गी शाखा के कवि थे। उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ‘पद्मावत’ था, जो उन्होंने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के प्रेम प्रसंग पर आधारित करके लिखा था।
संदर्भ पाठ :
मलिक मुहम्मद जायसी, बारहमासा (कक्षा – 12, पाठ – 8, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
‘जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा’ पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
हमारी सहयोगी वेबसाइटें..