अगहन मास में अगहन मास की विशेषताएं यह होती है कि अगहन मास में दिन छोटे होते हैं और रातें लंबी होती हैं। ऐसी स्थिति में नायिका नागमती के लिए बहुत कष्टकारी स्थिति बन गई है, क्योंकि विरह की अवस्था में उसका दिन तो जैसे तैसे कट जाता है, परंतु उसकी रातें नही कट पाती हैं। पूरी रात उसे अपने प्रियवर की याद सताती है। जब वह घर में अकेली होती है, तो उसके विरह की दशा अपने उच्चतम स्तर तक पहुंच जाती है। वह अपने प्रिय के रूप में जलती रहती है। उसकी स्थिति दीपक की बाती की तरह हो जाती है। जिस तरह दीपक की बाती अग्नि में जलती रहती है, उसी तरह नागमती भी अपने प्रिय की याद में विरह रूपी अग्नि में जलती रहती है। कहने को तो अगहन रातें बेहद ठंडी होती है, लेकिन अपने प्रिय की याद में ये रातें और अधिक कष्टकारी होती हैं। यदि उसके प्रिय उसके पास होते तो शायद वह इस ठंड के सह लेती लेकिन उसे अब ये राते सही नही जाती है, वह पूरी रात कांपती रहती है। नागमती अपने आस-पड़ोस की स्त्रियों को बनाव श्रृंगार करते हुए देख रही हैं, लेकिन वह बनाव श्रृंगार नहीं कर रही, क्योंकि उसके प्रिय तो परदेश गए हैं। अब किसके लिए बनाव श्रंगार करें। जहाँ इस ठंड में लोग जगह जगह पर आग जलाकर गर्मी ले रहे हैं, वही नागमती तो अंदर ही अंदर विरह रूपी अग्नि में जल रही है और यह ठंडी अगहन की रातें भी उसे कोई राहत नहीं दे रही हैं।
पाठ के बारे में…
यह पाठ मलिक मोहम्मद जायसी की प्रसिद्ध रचना ‘पद्मावत’ के ‘बारहमासा’ पदों से संबंधित है। इस पाठ में बारहमासा पदों में नायिका नागमती के विरह का वर्णन किया गया है। कवि शीत ऋतु में और अगहन और पूस मास में नायिका की विरह दशा का चित्रण किया है।
मलिक मोहम्मद जायसी सोलहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध सूफी कवि थे, जो सूफी प्रेम मार्गी शाखा के कवि थे। उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ‘पद्मावत’ था, जो उन्होंने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के प्रेम प्रसंग पर आधारित करके लिखा था।
संदर्भ पाठ :
मलिक मुहम्मद जायसी, बारहमासा (कक्षा – 12, पाठ – 8, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?
‘जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा’ पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
हमारी सहयोगी वेबसाइटें..