भाव स्पष्ट कीजिए −
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
भाव : मैथिली शरण गुप्त द्वारा रची गई ‘मनुष्यता’ नामक कविता की इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि कहते हैं कि मनुष्य को भूल कर भी अपनी धन-संपत्ति पर अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो धन-संपत्ति उसके पास है. वही धन-संपत्ति उसके जैसे लाखों अन्य लोगों के पास भी है। ईश्वर सभी पर अपनी कृपा बरसाता है। इसलिए मनुष्य को ऐसी किसी भी वस्तु पर अहंकार नहीं करना चाहिए। जो केवल उसके पास ही नहीं अन्य लोगों के पास भी है।
इस संसार का स्वामी ईश्वर सबके लिए दयालु है। वह सब को एक साथ समान व्यवहार करता है। वह केवल आप पर ही कृपा नहीं करता। वह सब पर कृपा करता है।
कवि के अनुसार सच्चा मनुष्य तो वही है, जो अपनी संपत्ति पर अहंकार ना करते हुए केवल मनुष्यता के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है और दूसरों के हित के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देता है।
पाठ के बारे में….
यह पाठ कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रची गई ‘मनुष्यता’ नामक कविता के बारे में है। इस पाठ में मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ कविता को प्रस्तुत किया गया है। ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। कवि मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने की प्रेरणा देते हैं और चाहते हैं कि मनुष्य ऐसा जीवन जिए, ऐसे अच्छे कार्य करके जाए कि लोग मरने के बाद भी उसे याद रखें। अपने लिए तो सभी जीते हैं, जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं वही महान कहलाते हैं। उन्हें ही लोग याद रखते हैं।’मैथिलीशरण गुप्त’ जिन्हें ‘राष्ट्र कवि’ की उपाधि से विभूषित किया गया है। वह हिंदी साहित्य जगत के अनमोल कवि थे। उनका जन्म 1886 में झांसी के चिरगांव में हुआ था। हिंदी खड़ी बोली पर उनकी गहरी पकड़ थी। उनकी कविताओं में संस्कृतनिष्ठ हिंदी का गहरा प्रभाव दिखाई पड़ता है।
साकेत, यशोधरा जैसी उनकी कालजयी कृतियां है। उनका 1964 में हुआ था।
संदर्भ पाठ :
मैथिलीशरण गुप्त, मनुष्यता (कविता) (कक्षा – 10 पाठ – 4, स्पर्श)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
हमारी सहयोगी वेबसाइटें..