कविता के आधार पर अगर हम कहे तो कवि मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करने के लिए कह रहे हैं, जो परोपकार से परिपूर्ण जीवन हो यानी मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए, जिसमें वो हमेशा दूसरों के काम आए। उसे दूसरों की मदद करने में संकोच नहीं करना चाहिए। वह सबसे मिल-जुल कर रहे प्रेम एवं भाईचारे से रहे तथा सबके साथ मिलजुल कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने वाले मार्ग पर चले। वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर सभी के हित का चिंतन करें। उसे अपनी धन संपत्ति आदि पर कभी अहंकार ना हो। संकट की घड़ी में वह सदैव दूसरों के काम आए। इस तरह व्यक्ति को मनुष्यता से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए।पाठ के बारे में….
यह पाठ कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रची गई ‘मनुष्यता’ नामक कविता के बारे में है। इस पाठ में मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ कविता को प्रस्तुत किया गया है। ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। कवि मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने की प्रेरणा देते हैं और चाहते हैं कि मनुष्य ऐसा जीवन जिए, ऐसे अच्छे कार्य करके जाए कि लोग मरने के बाद भी उसे याद रखें। अपने लिए तो सभी जीते हैं, जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं वही महान कहलाते हैं। उन्हें ही लोग याद रखते हैं।’मैथिलीशरण गुप्त’ जिन्हें ‘राष्ट्र कवि’ की उपाधि से विभूषित किया गया है। वह हिंदी साहित्य जगत के अनमोल कवि थे। उनका जन्म 1886 में झांसी के चिरगांव में हुआ था। हिंदी खड़ी बोली पर उनकी गहरी पकड़ थी। उनकी कविताओं में संस्कृतनिष्ठ हिंदी का गहरा प्रभाव दिखाई पड़ता है।
साकेत, यशोधरा जैसी उनकी कालजयी कृतियां है। उनका 1964 में हुआ था।
संदर्भ पाठ :
मैथिलीशरण गुप्त, मनुष्यता (कविता) (कक्षा – 10 पाठ – 4, स्पर्श)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
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