कवि ने दधीचि, कर्ण आदि जैसे महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए यह संदेश दिया है कि मनुष्यता को अपनाने के लिए मनुष्य को उदार तथा परोपकारी होना आवश्यक होता है। जो मनुष्य परोपकार के लिए सदैव तत्पर रहता है, जो दूसरों के हित के लिए कुछ भी करने से संकोच नहीं करता, जो अपने स्वार्थ को त्याग कर परमार्थ को अपनाता है, वह व्यक्ति ही मनुष्यता का सही अधिकारी होता है। जिस प्रकार दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपने अस्थियों का दान कर दिया, कर्ण ने परोपकार के लिए अपने खाल तक दान कर दी। इनके माध्यम से कवि ने यही संदेश दिया कि यह शरीर नश्वर है अतः इसका मोह त्यागकर मानवता के कल्याण के लिए मनुष्य को कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए। यदि कभी मानवता के कल्याण के लिए शरीर का बलिदान करने की आवश्यकता पड़े तो संकोच नही करना चाहिए। कवि ने दधीचि और कर्ण जैसे महान व्यक्तियों के माध्यम से मनुष्यता के लिए यही संदेश देने का प्रयत्न किया है।
पाठ के बारे में….
यह पाठ कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रची गई ‘मनुष्यता’ नामक कविता के बारे में है। इस पाठ में मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ कविता को प्रस्तुत किया गया है। ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। कवि मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने की प्रेरणा देते हैं और चाहते हैं कि मनुष्य ऐसा जीवन जिए, ऐसे अच्छे कार्य करके जाए कि लोग मरने के बाद भी उसे याद रखें। अपने लिए तो सभी जीते हैं, जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं वही महान कहलाते हैं। उन्हें ही लोग याद रखते हैं।
‘मैथिलीशरण गुप्त’ जिन्हें ‘राष्ट्र कवि’ की उपाधि से विभूषित किया गया है। वह हिंदी साहित्य जगत के अनमोल कवि थे। उनका जन्म 1886 में झांसी के चिरगांव में हुआ था। हिंदी खड़ी बोली पर उनकी गहरी पकड़ थी। उनकी कविताओं में संस्कृतनिष्ठ हिंदी का गहरा प्रभाव दिखाई पड़ता है।
साकेत, यशोधरा जैसी उनकी कालजयी कृतियां है। उनका निधन 1964 में हुआ था।
संदर्भ पाठ :
मैथिलीशरण गुप्त, मनुष्यता (कविता) (कक्षा – 10 पाठ – 4, स्पर्श)
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