भाव स्पष्ट कीजिए- मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात। जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ। जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु। मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

भाव स्पष्ट कीजिए-
1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
 मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।

भावार्थ : इस पंक्ति के माध्यम से कवि बिहारी श्रीकृष्ण के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण के सौंदर्य की तुलना नीलमणि पर्वत और उस पर पड़ रही सूरज की सुनहरी धूप से की है। कवि बिहारी कहते हैं कि श्रीकृष्ण के नीले शरीर पर उनके द्वारा धारण किए गए पीतांबर यानी पीले वस्त्र इस प्रकार शोभायमान दिखाई दे रहे हैं कि जैसे नीलमणि पर्वत पर सुबह के समय सूरज की सुनहरी धूप निकल रही हो। नीलमणि पर्वत पर गिर रही सुनहरी धूप के समान श्रीकृष्ण का सौंदर्य अद्भुत प्रतीत हो रहा है।

2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
भावार्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु के प्रचंड आवेग के कारण सारा जंगल ही तपोवन के समान हो गया है। जंगल में अलग-अलग प्रजाति के पशु रहते हैं जिनमें आपसी दुश्मनी होती है, लेकिन इस भीषण गर्मी ने सभी पशुओं को एक साथ ला खड़ा किया है और सभी पशु आपसी बैरभाव बुलाकर एक ही छत के नीचे जमा हो गए हैं। ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी ने उनके अंदर के बैरभाव को मिटा दिया है और पूरा जंगल तपोवन के समान हो गया है। तपोवन में रहने वाले प्राणी आपस में कोई बैरभाव नहीं रखते और मिलजुल कर रहते हैं। उसी प्रकार भीषण गर्मी के कारण जंगल के पशु भी आपसी बैरभाव भुलाकर एक साथ रहने लगे हैं।

3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
    मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
भावार्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि तरह-तरह के प्रपंच रखने से और बाहरी आडंबर कर्मकांड आदि करने से ईश्वर की राम यानी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। माला फेरने से, हल्दी चंदन का लेप लगाने से, माथे पर तिलक लगाने से भी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ऐसे ही लोगों का मन तो बहुत कच्चा होता है, जो जरा सी बात पर ही डोलने लगता है। इन लोगों का मन काँच के समान कच्चा होता है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए मन को कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। जो सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है, जिससका मन निर्मल है, छल कपट नहीं है। उसको ही राम यानि ईश्वर मिलते हैं।

पाठ के बारे में….

इस पाठ में कवि बिहारी के नीतिगत और श्रंगारपरक दोहे दिए गए हैं। कवि बिहारी श्रृंगारपरक दोहों की रचना के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक श्रृंगारपरक दोहों की रचना की थी।। इसके अलावा उन्होंने लोक ज्ञान,  शास्त्र ज्ञान पर आधारित नीति के दोहे भी रचे हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने नीति संबंधी बातें कहीं हैं। प्रस्तुत दोहे उनके नीति वचनों पर आधारित दोहों और श्रंगारपरक दोहों का मिश्रण है।कवि ‘बिहारी’ सोलहवी-सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिनका जन्म सन् 1595 में ग्वालियर में हुआ था। उनके गुरु आचार्य केशवदास थे। वह रसिक स्वभाव के कवि थे, इसलिये उन्होंने अनेक श्रंगार युक्त पदों की रचना की है। उनके दोहों में ब्रजभाषा और बुंदेलखंडी भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है।
उनके द्वारा रचित ग्रंथ एकमात्र ग्रंथ का नाम ‘बिहारी सतसई’ है, जिसमें 700 दोहों का संकलन है। उनका निधन सन् 1663 में हुआ।

संदर्भ पाठ :

बिहारी,  बिहारी के दोहे (कक्षा – 10, पाठ – 3, स्पर्श)

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

 

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