सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।


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कवि बिहारी ने इस दोहे के माध्यम से यह बात स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि ईश्वर को पाने के लिए व्यर्थ के कर्मकांड करने की आवश्यकता नहीं है। व्यर्थ के कर्मकांड करना, माला जपना, तिलक लगाना, छापे लगवाना आदि करने से राम यानि ईश्वर नहीं प्राप्त होते। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए मन में सच्ची भक्ति पैदा करनी पड़ती है। अपने मन को निर्मल बनाकर प्रभु के प्रति सच्ची भक्ति करने से उनको सच्चे मन से याद करने से ही भगवान प्रसन्न होते हैं।
कुछ लोग पूरे जीवन केवल आडंबर रहते रहते हैं, लेकिन उन्हें ईश्वर प्राप्त नहीं हो पाते। ईश्वर का निवास सच्चे, शुद्ध और सात्विक, निर्मल मन में होता है। कच्चा मन काँच के समान नाजुक होता है जो जरा सा आघात लगने सी ही टूट जाता है। सच्चा मन इतना नाजुक नही होता।

पाठ के बारे में….

इस पाठ में कवि बिहारी के नीतिगत दोहे बताए गए हैं। कवि बिहारी श्रृंगार परक रचना के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक श्रृंगार दोहों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने लोक ज्ञान,  शास्त्र ज्ञान पर आधारित नीति के दोहे भी रचे हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने नीति संबंधी बातें कहीं हैं। प्रस्तुत दोहे उनके नीति वचनों पर आधारित दोहों और श्रंगारपरक दोहों का मिश्रण है।
कवि ‘बिहारी’ सोलहवी-सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिनका जन्म सन् 1595 में ग्वालियर में हुआ था। उनके गुरु आचार्य केशवदास थे। वह रसिक स्वभाव के कवि थे, इसलिये उन्होंने अनेक श्रंगार युक्त पदों की रचना की है। उनकी दोहों में ब्रजभाषा और बुंदेलखंडी भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है।
उनके द्वारा रचित ग्रंथ का एकमात्र रचित ग्रंथ का नाम ‘बिहारी सतसई’ है, जिसमें 700 दोहों का संकलन है। उनका निधन 1663 में हुआ।

संदर्भ पाठ :

बिहारी,  बिहारी के दोहे (कक्षा – 10, पाठ – 3, स्पर्श)

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहि है सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ – स्पष्ट कीजिए।

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