मीराबाई की भाषा शैली मिश्रित भाषाओं की शैली रही है। उन्होंने अपने पदों में मिश्रित भाषा का प्रयोग किया है। मीराबाई मूलतः राजस्थान की रहने वाली थी, इसलिए उनके पदों में राजस्थानी भाषा का सबसे अधिक प्रभाव दिखाई पड़ता है। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय ब्रज में बिताया था और इसलिए उनके पदों में ब्रजभाषा का भी अच्छा खासा प्रभाव दिखाई देता है। इसलिए उनके पदों में राजस्थानी एवं ब्रजभाषा का मिश्रित प्रभाव दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त मीराबाई के पदों में गुजराती शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
मीराबाई के पदों की भाषा शैली सरल एवं सहज है, जो तत्कालीन समाज की आम बोलचाल की भाषा थी और लोगों को सरल रूप से समझ में आ जाती थी। इसी कारण उनके पद बेहद लोकप्रिय हुए। मीराबाई के पदों में भाव भरा हुआ है और उनके पद प्रवाहमय है। उनके पद में भक्ति रस की प्रधानता है अलंकारों का भी प्रयोग उन्होंने कुशलता से किया है। उनके पदों में अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
पाठ के बारे में …
इस पाठ में मीरा के पदों की व्याख्या की गई है। मीराबाई भक्ति काल की एक प्रमुख संत कवयित्री वही हैं, जो कृष्ण के प्रति अपनी अन्यतम भक्ति के लिए जानी जाती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन कृष्ण की भक्ति में ही समर्पित कर दिया था। वह कृष्ण को अपना प्रियतम मानती थी और अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना शेष जीवन श्रीकृष्ण की आराधना में व्यतीत कर दिया। उन्होंने अनेक पदों की रचना की जो मीराबाई के पदों के नाम से प्रसिद्ध है।
संदर्भ पाठ :
मीरा – पद (कक्षा – 10, पाठ – 2, हिंदी, स्पर्श)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
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