मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती उस प्रकार की है, जिस तरह हरि या श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाद की भरी सभा में रक्षा की। उन्होंने द्रौपदी को वस्त्र प्रदान करके उन्हें लज्जित होने से बचाया था। जिस प्रकार उन्होंने नरसिंह का रूप धारण करके भक्त प्रह्लाद को बचाया और हिरणकश्यप का वध किया। जब मगरमच्छ ने हाथी का पैर अपने मुंह में जकड़ लिया था, तब उन्होंने हाथी की मगरमच्छ से रक्षा करके उसके प्राण बचाए। उसी प्रकार आप भी संकट की घड़ी में मेरी रक्षा करो और मुझे पीड़ा से मुक्त करो।
पाठ के बारे…
इस पाठ में मीरा के पदों की व्याख्या की गई है। मीराबाई भक्ति काल की एक प्रमुख संत कवयित्री वही हैं, जो कृष्ण के प्रति अपनी अन्यतम भक्ति के लिए जानी जाती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन कृष्ण की भक्ति में ही समर्पित कर दिया था। वह कृष्ण को अपना प्रियतम मानती थी और अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना शेष जीवन श्रीकृष्ण की आराधना में व्यतीत कर दिया। उन्होंने अनेक पदों की रचना की जो मीराबाई के पदों के नाम से प्रसिद्ध है।
संदर्भ पाठ
मीरा – पद (कक्षा – 10, पाठ – 2, हिंदी, स्पर्श)