बिल्कुल नहीं, आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा व भ्रातृ प्रेम मिलना संभव ही नहीं है। यदा-कदा एकाध मामला ऐसा दिख जाए, नहीं तो आज राम और भरत जैसा प्राप्त प्रेम मिलना संभव नहीं है।
आज तो भाई धन-सम्पत्ति के लिए अपने भाई का गला काटने से नहीं चूकता। पिता की संपत्ति के बंटवारे के लिए भाई-भाई एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। किसी एक भाई के संकट की स्थिति में दूसरा भाई उसको पूछता तक नही। ना ही कोई सहयोग करता है।
आज के रिश्तो का आधार केवल धन हो गया है। दो भाइयों की आर्थिक स्थिति समान अगर समान नहीं है तो दोनों में संबंध भी समान नहीं होंगे।
जहां भरत ने अपने भाई के प्रेम की खातिर राजसी वैभव को ठुकरा दिया। राम ने अपने पिता की आज्ञा के खातिर सारी सुख-सुविधाओं का परित्याग कर सहज रूप से वन जाने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई राम का साथ देने के लिए राजसी सुखों का त्याग करते हुए उनके साथ वन में जाने का निश्चय किया, वैसे उदाहरण आज देखने को नहीं मिलेंगे। आज कोई भाई अपने बड़े या छोटे भाई के लिए ऐसा नहीं करेगा।
पाठ के बारे में..
इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।
संदर्भ पाठ :
तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?
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