हाँ, बिल्कुल सही है। महानता कोई भौतिक वस्तु नहीं है जिसका मापन किया जा सके। मानता एक एहसास है, एक अनुभव है, महानता एक भाव है जो कोई एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व के आकलन के लिए अपने मन में बनाता है।
महानता एक पदवी के समान है जो किसी व्यक्ति को उसके कर्मों के कारण दूसरे व्यक्तियों द्वारा मिलती है।
महानता का सम्मान पाना हर किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं होती, वह एक सम्मान है, जो किसी व्यक्ति के गुणों के कारण ही उसे समाज से प्राप्त होता है। जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ-लोभ के चक्कर में पड़ा रहता है, जिसे केवल अपनी सुख-सुविधा की ही चिंता होती है, वह व्यक्ति महान नहीं बन सकता।
महान बनने के लिए अपने स्वार्थ को त्याग कर परमार्थ का भाव अपनाना पड़ता है। दूसरों के हित के लिए अपने जीवन के सुखों को त्याग करना पड़ता है। सर्व कल्याण की भावना से कार्य करना पड़ता है और कोई भी कठिन परिस्थिति अथवा आसान परिस्थिति हो, हर स्थिति में एक सा भाव अपनाना पड़ता है, तभी व्यक्ति महान बनता है। इसलिए ये सही है कि ‘महानता लाभलोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है।’
पाठ के बारे में..
इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।
संदर्भ पाठ :
तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?