(क) कबहुँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय बचन सवारे।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘ज’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार यानि कुल तीन बार हुई है, इसलिए इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट हो रहा है।
(ख) कबहुँ कहति यों “बड़ी बार भइ जाहु भूप पहँ, भैया।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘क’ एवं ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक यानि कुल दो बार हुई है इसलिए इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट हो रहा है।
(ग) ए बर बाजि बिलोकि आपने बहुरो बनहिं सिधावौ।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक यानि कुल पाँच बार हुई है, इसलिए यहाँ पर ‘अनुप्रास अलंकार’ है।
(घ) जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज वार वार चुचकारे।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘प’ तथा ‘व’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है यानि ‘प’ वर्ण की तीन बार और ‘व’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ ‘अनुप्रास अलंकार’ है।
पाठ के बारे में..
इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।
संदर्भ पाठ :
तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?
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