पठित पदों के आधार पर यदि हम विवेचन करें तो तुलसीदास द्वारा रचित इन पदों पदों का पाठ करने से ही पता चल जाता है कि तुलसीदास का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। वह अवधी भाषा, ब्रजभाषा और संस्कृत तीनों भाषाओं के विद्वान थे और उनकी इन्हीं तीनों भाषाओं पर गहरी पकड़ थी। जिस प्रकार उनके पदों में तीनों भाषाओं का मिश्रण मिलता है और जिस तरह से उन्होंने शब्दों का सही संयोजन किया है, उससे पता चलता है कि उनका भाषा पर पूरा अधिकार था।
जहाँ उन्होंने ‘राम भरत का प्रेम’ इन पदों की रचना अवधी भाषा में की है, वहीं उन्होंने दूसरे पद ब्रजभाषा में रचे हैं, लेकिन दोनों ही भाषाओं में रचे गए पदों में कोई भी भाषा की दृष्टि से कोई भी कमी नहीं दिखाई देती। शब्दों का सुंदर संयोजन एवं विन्यास मिलता है। पदों की भाषा भी सरल एवं सहज है। उन्होंने अलंकारों का प्रयोग सुंदर तरीके से किया है। उन्होंने अनुप्रास अलंकार, उपमा अलंकार और
उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा अपने पदों में बिखेरी है।
पाठ के बारे में..
इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।
संदर्भ पाठ :
तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?
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