(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए। (ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।


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(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।
(ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।

(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण इस प्रकार होंगे…
“कबहुँ समुझि वनगमन राम को रही चकि चित्रलिखी सी।”

इस पंक्ति में उपमा अलंकार है, क्योंकि इसमें माता कौशल्या की तुलना चित्र की स्त्री से की गई है।
श्रीराम के वन जाने के बाद माता कौशल्या बिल्कुल उसी प्रकार स्तब्ध और स्थिर हो गई हैं, जैसे किसी चित्र में कोई स्त्री स्थिर होती है। माता कौशल्या हिलडुल नही रही है। उनकी तुलना स्त्री के चित्र से की गई है। उपमा अलंकार में किन्हीं दो वस्तुओं में समानता के भाव से तुलना की जाती है।’तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।’ इस पंक्ति में भी उपमा अलंकार है, क्योंकि यहाँ पर ‘सिखी सी’ के माध्यम से उपमा अलंकार प्रकट हो रहा है। इस पंक्ति में माता कौशल्या की दशा मोरनी के समान बताई गई है। मोरनी सावन के महीने में सब कुछ भूलकर नाचती तो है, लेकिन जब उसकी दृष्टि अपने पैरों पर पढ़ती है तो वह रो पड़ती है। उसी प्रकार माता कौशल्या की दशा भी ऐसी ही है। वह अपने पुत्र राम की स्मृति से जुड़े पलों को याद कर अपने दिल को दिलासा तो दे रही हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें यह याद आता है कि राम वन में अनेक कष्ट भोग रहे होंगे उनका हृदय दुख से भर उठता है।

(ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग इस प्रकार है…
पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग दूसरे पद में हुआ है।

इस पद की इस पंक्ति में उपेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है…
“तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे मनहुँ कमल हिमसारे।”
इस पंक्ति के माध्यम से राम के उस घोड़े की तुलना ऐसे कमल से की गई है, जो वक्त की मार के कारण मुरझा गये हैं। राम का घोड़ा राम के वन गमन के बाद उनके वियोग में दुखी होता है और उसकी दशा की तुलना कमल के फूल से की गई है। घोड़े की वियोगी दशा बिल्कुल ऐसी ही है, जैसे बर्फ की मार से कमल मुरझा जाते हैं।
कवि ने इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है और उसमेय में ही उपमान की संभावना को प्रकट कर उत्प्रेक्षा अलंकार को आरोपित कर दिया है। इससे राम के घोड़े के दुख का सजीव चित्रण हो उठा है।

पाठ के बारे में..

इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।

संदर्भ पाठ :

तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :

आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।

भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।

‘महानता लाभलोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है’ को केंद्र में रखकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?

पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?

(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए। (ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।

‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

‘फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली’। पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।

राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।

भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?

‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?

‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?

 

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