भाव सौंदर्य : भरत कहते हैं कि यदि मैं सारे घटनाक्रम के लिए अपनी माँ पर कलंक लगाऊं और स्वयं को साधु-सज्जन बताकर प्रस्तुत करूँ तो यह संभव नहीं होगा, क्योंकि संसार में मैं कैकेई का पुत्र ही माना जाऊंगा। जिस प्रकार मोटे चावल की बाली में उत्तम कोटि के चावल नहीं लगते। तालाब में जो काले घोंघे पाए जाते हैं, उनसे मोती पानी की आशा करना व्यर्थ है, उसी प्रकार यदि मैं अपने दोषों को छुपाकर सारा दोस्त अपनी माँ के ऊपर मढ़ दूं और स्वयं को साधु सज्जन बताऊं तुझे ना चो उचित है और ना ही संभव होगा। यहाँ पर इस पंक्ति के माध्यम से भरत अपने परिवार में हो रहे सारे घटनाक्रम का दोषी स्वयं को मानते हैं |
शिल्प सौंदर्य : तुलसीदास ने ये पद अवधी भाषा में रचित किए हैं। पदों के पद चौपाई छंद है। भाषा का प्रवाह बना हुआ है तथा गेय शैली में है |
पाठ के बारे में..
इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।
संदर्भ पाठ :
तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?