राम के प्रति भरत का बेहद स्नेह एवं श्रद्धाभाव है। वह अपने बड़े भाई श्रीराम को भगवान की तरह पूजते हैं। वह स्वयं को श्रीराम का अनुचर मानते हैं। अपने बड़े भाई श्रीराम के प्रति हुए अप्रत्याशित घटनाक्रम से बेहद दुखी हैं। अपने बड़े भाई के वन जाने पर उन्हें बेहद दुख होता है और वह अपने बड़े भाई श्री राम को वापस वन से बुलाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। जब वन में अपने भाई से मिलने जाते हैं तो उनके सामने आकर वह खुशी से फूले नहीं समाते। अपने बड़े भाई को देखकर उनकी आँखों से श्रद्धा भाव से आँसू निकलने लगते हैं। वह अपने बड़े भाई को सिर्फ भाई ही नहीं मानते बल्कि अपना आराध्य भी मानते हैं। वह बचपन में घटी घटनाओं का उल्लेख भी करते हैं, जिसमें बड़े भाई उनके प्रति उनका कितना ध्यान रखते थे। इस तरह वह अलग-अलग प्रसंगों द्वारा अपने भाई के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हैं। उन्हें आशा है कि अपने बड़े भ्राता के दर्शन करने के बाद सब कुछ अच्छा हो जाएगा। यह सारी बातें भरत कीअपने बड़े भाई राम के प्रति अपार श्रद्धा प्रकट करती हैं।
पाठ के बारे में..
इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।
संदर्भ पाठ :
तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?
[…] राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत कि… […]
[…] राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत कि… […]
[…] राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत कि… […]
[…] राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत कि… […]