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भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
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भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है कि वह स्वभाव से स्वार्थी और लोभी प्रवृत्ति के नहीं थे। जो भी घटनाक्रम घटा उसमें भले ही उनकी गलती ना हो, लेकिन उसका सारा दोष उन्होंने स्वयं लेकर अपनी माता कैकई पर दोषारोपण नहीं किया। जबकि उनकी माता कैकेई ही इस बात के लिए दोषी थीं।
उनकी माता कैकई ने अपने पुत्र के मोह में आकर राजा राजा दशरथ से श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया था ताकि उनका पुत्र भरत अयोध्या का राजा बन सके। उनकी माता के पुत्र मोह के कारण श्रीराम को 14 वर्ष के लिए जाना पड़ा और बड़े पुत्र राम विरह में राजा दशरथ दुखी होकर स्वर्ग सिधार गए। इन सारी बातों के लिए भरत ने स्वयं को दोषी माना। उनके अनुसार यदि वह नहीं होते तो उनकी माँ भी पुत्र मोह में आकर यह सब कार्य नहीं करती। इसीलिए वह सारे घटनाक्रम का दोष अपने ऊपर ले लेते हैं।
यह बात उनके उज्जवल चरित्र की ओर संकेत करती है, कि वह बेहद सज्जन व्यक्ति थे जो दूसरों के दोष को भी अपने ऊपर ले कर अपनी सज्जनता को प्रकट करते हैं।

पाठ के बारे में….

इस पाठ में तुलसीदास के पदों की व्याख्या की गई है। तुलसी दास ने ‘भरत राम का प्रेम’ पद के माध्यम से श्रीराम के अपने छोटे भाइयों के प्रति स्नेह को वर्णित किया है, कि किस प्रकार अपने छोटे भाइयों को प्रसन्न रखने के लिए श्रीराम जानबूझकर खेल खेल में हार जाते हैं।
दूसरे ‘पद’ में श्रीराम की अपनी माताओं के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाया गया है।

संदर्भ पाठ :

तुलसीदास – भरत-राम का प्रेम/पद (कक्षा – 12, पाठ – 7, हिंंदी – अंतरा)

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर :

आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।

भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।

‘महानता लाभलोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है’ को केंद्र में रखकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?

पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?

(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए। (ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।

गीतावली से संकलित पद ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ मैं निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

‘फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली’। पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।

राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।

‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?

‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?

 

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