इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने प्रेम का महत्व समझाया है। कबीर के अनुसार लोग ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं। वह तरह-तरह के उपाय आदि करते हैं और न जाने क्या-क्या यतन-जतन करते रहते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि ईश्वर को पाने के लिए बहुत बड़े-बड़े कार्य करने की जरूरत नहीं है, बल्कि एक छोटा सा अक्षर प्रेम ही ईश्वर को पा लेने के लिए पर्याप्त है।
जिसके अंदर प्रेम है, जिसने प्रेम को समझ लिया वह ज्ञानी हो गया। जो ज्ञानी हो गया, उसे समझो ईश्वर मिल गए।
बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लेने से कोई विद्वान नहीं बन जाता। सही मायनों में विद्वान वही व्यक्ति बनता है, जो प्रेम के सच्चे, शुद्ध, निर्मल, प्रेम को समझ लेता है। इसके अंदर प्रेम का भाव जग गया, वह ईश्वर को बेहद सरलता से पा सकता है, वही सच्चा ज्ञानी बन सकता है।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में कबीर की साखी के माध्यम से अनेक नीति वचन कहे गए हैं। साखी शब्द का अर्थ होता है, साक्षी।
साखी शब्द का तद्भव रूप है, जो किसी बात का साक्ष्य यानि प्रमाण है।
साक्षी शब्द का प्रत्यक्ष सार्थक अर्थ होता है, प्रत्यक्ष ज्ञान। वह प्रत्यक्ष ज्ञान जो गुरु अपने शिष्य को प्रदान करता है।
साखी एक दोहा छंद है और कबीर के अधिकांश दोहे साखी के नाम से ही प्रसिद्ध है।कबीर भक्तिकालीन युग निर्गुण विचारधारा के प्रसिद्ध संत कवि रहे हैं, जो चौदहवीं शताब्दी में जन्मे थे। उन्होंने ईश्वर के निराकार रूप की आराधना पर जोर दिया है, और समाज में फैली कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है।
संदर्भ पाठ :
‘कबीर’ साखी (कक्षा – 10, पाठ-1, स्पर्श)
इस पाठ के दूसरे प्रश्न उत्तर :
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
3 thoughts on “‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?<div class="yasr-vv-stars-title-container"><div class='yasr-stars-title yasr-rater-stars' id='yasr-visitor-votes-readonly-rater-061fe897d5963' data-rating='0' data-rater-starsize='16' data-rater-postid='3759' data-rater-readonly='true' data-readonly-attribute='true' ></div><span class='yasr-stars-title-average'>0 (0)</span></div>”