कबीर के अनुसार संसार में दुखी वे लोग हैं, जो सांसारिक भोग-विलास में मगन हैं। जो सांसारिक सुख-सुविधाओं का भरपूर भोग कर रहे हैं। जिन्हें भोग-विलास करने से ही फुर्सत नहीं है। वह उस तथाकथित सुख के भ्रम जी रहे सुखी लोग है।
कबीर के अनुसार दुखी लोग वे लोग हैं जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, जिनके सामने सांसारिक सुख-सुविधा और भोग-विलास कुछ नहीं है और उन्होंने इन सब को त्याग कर ईश्वर को पाने का मार्ग समझ लिया है।
कबीर के अनुसार ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है, क्योंकि जो लोग सांसारिक सुखों में लिप्त हैं, जो जीवन के भोगों को भोगने में डूबे हुए हैं, वह वास्तव में सोये हुए हैं।
इसके विपरीत ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है, और वे लोग जो सांसारिक सुखों को तुच्छ समझते हैं। जिनके सामने भोग-विलास कुछ नहीं है, जो ईश्वर को पाने के मार्ग पर चल पड़े हैं, वह जगे हुए हैं, क्योंकि उनके अंदर आत्मज्ञान हो गया है।
कबीर इस सांसारिक दुर्दशा को लेकर चिंतित भी हैं।
पाठ के बारे में…
इस पाठ में कबीर की साखी के माध्यम से अनेक नीति वचन कहे गए हैं। साखी शब्द का अर्थ होता है, साक्षी।
साखी शब्द का तद्भव रूप है, जो किसी बात का साक्ष्य यानि प्रमाण है।
साक्षी शब्द का प्रत्यक्ष सार्थक अर्थ होता है, प्रत्यक्ष ज्ञान। वह प्रत्यक्ष ज्ञान जो गुरु अपने शिष्य को प्रदान करता है।
साखी एक दोहा छंद है और कबीर के अधिकांश दोहे साखी के नाम से ही प्रसिद्ध है।कबीर भक्तिकालीन युग निर्गुण विचारधारा के प्रसिद्ध संत कवि रहे हैं, जो चौदहवीं शताब्दी में जन्मे थे। उन्होंने ईश्वर के निराकार रूप की आराधना पर जोर दिया है, और समाज में फैली कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है।
संदर्भ पाठ :
‘कबीर’ साखी (कक्षा – 10, पाठ-1, स्पर्श)
इस पाठ के दूसरे प्रश्न उत्तर :
‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?