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कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से हुआ। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?
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कविता का आरंभ तोड़ो तोड़ो तोड़ो से हुआ है और अंत गोड़ो गोड़ो गोड़ो से, ऐसा  करने का कवि उद्देश्य यह है कि वह मनुष्य को प्रेरित करना चाहता है कि मनुष्य अपने जीवन में आने वाली विघ्न, बाधाओं, खीझ रूपी चट्टानों को तोड़ने का प्रयास करे। जब मनुष्य अपने जीवन की विघ्न, बाधा, खीझ की चट्टानों को तोड़ देगा, तब ही उसके आगे बढ़ने का रास्ता साफ होगा और उसके मन में सोचने-समझने की शक्ति का भी विकास होगा। मनुष्य के जीवन में आने वाली यह सभी विघ्न, बाधाएं, खीझ आदि ही उसके विचारों को प्रभावित करती हैं और उसे आगे बढ़ने से रोकती है।
कविता का अंत गोड़ो गोड़ो गोड़ो से हुआ है, इन शब्दों के माध्यम से कवि मनुष्य को अपना मन मजबूत बनाने के लिए और सृजन शक्ति विकसित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। कवि मनुष्य से कहना चाह रहा है कि जब उसने अपने अंदर व्याप्त विघ्न, बाधा, खीझ की चट्टानों को तोड़ ही दिया है तो अब उसे अपने अंदर नवीनतम विचारों का सृजन करना चाहिए। अपने मन को उपयोगी विचारों से भरना चाहिए, जो उसके लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक हो और उसे आगे बढ़ने में मदद करें। मनुष्य अपनी सृजन शक्ति को विकसित करे।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में ‘वसंत आया’ और ‘तोड़ो’ ये दो कवितायें ‘रघुवीर सहाय’ ने दो कवितायें प्रस्तुत की हैं।
‘वसंत आया’ कविता में वसंत ऋतु के आगमन और उसके सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि को अचानक पता चलता है कि वसंत ऋतु का आगमन हो गया है, जब उसे मौसम मे परिवर्तन होता है। वो अपने घर जाकर इसकी पुष्टि भी कर लेता था।
‘तोड़ो’ कविता के माध्यम से कवि ने एक प्रतीकात्मक कविता प्रस्तुत की है। कवि का कहना है कि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊस और बंजर को तोड़ना पड़ता है। तभी खेतों में फसल लहराती है। उसी प्रकार अपने अपने मन में नवीन विचारों के सृजन के लिए पुराने और बंजर विचारों को त्यागना और तोड़ना पड़ता है, सभी नवीनता का सृजन होगा।रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक जाने-माने हस्ताक्षर रहे हैं। जिनका जन्म 1929 में लखनऊ उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर थे।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘हंसो-हंसो जल्दी हंसो’, ‘लोग भूल गए हैं’, ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ आदि के नाम प्रमुख हैं। रघुवीर सहाय रचनावली नाम से प्रकाशित हुई छह खंडों के काव्य संग्रह में उनकी सभी रचनाओं को संकलित किया गया है। वह साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किए जा चुके हैं। सन् 1990 में उनका निधन हो गया था।

संदर्भ पाठ :

रघुवीर सहाय – वसंत आया/तोड़ो (कक्षा – 12, पाठ – 6, अंतरा)

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

यह झूठे बंधन टूटें, तो धरती को हम जानें। यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है?

भाव स्पष्ट कीजिए। मिट्टी में रस होगा ही, जब वह पोसेगी बीज को, हम उसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को, गोड़ो गोड़ो गोड़ो

पत्थर’ और ‘चट्टान’ किसके प्रतीक है?

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है?

प्रकृति मनुष्य की सहचली है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।

अलंकार बताइए। (क) बड़े-बड़े पिपराए पत्ते। (क) कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो। (ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई चली गई। (घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल।

कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो, जैसे गरम पानी से नहाई हो, खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई, फिर चली गई। पंक्ति में भाव स्पष्ट कीजिए।

बसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली?

 

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