Tuesday, October 3, 2023

प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
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प्रकृति मनुष्य की सहचरी होती है, इस बात में जरा भी संदेह नहीं है। प्रकृति और मनुष्य का आपस में गहरा संबंध है। जब से मनुष्य का इस धरती पर अस्तित्व संभव हुआ है, तब से प्रकृति ने निरंतर उसकी सर्जरी के रूप में मनुष्य का साथ निभाया है। बिना प्रकृति के मनुष्य इस पृथ्वी पर अपना जीवन नहीं जी सकता।
प्रकृति ही मनुष्य को इस धरती पर हर तरह की सुविधाएं प्रदान करने में सहयोग देती है। प्रकृति के माध्यम से ही मनुष्य को अपने जीवन आवश्यक वस्तुएं प्राप्त होती हैं। प्रकृति के माध्यम से ही मनुष्य को अपने जीवन के लिए सभी जरूरी साधन प्राप्त होते हैं, चाहे वह हवा हो या पानी हो, अनाज हो, वस्त्र हों, आवास हों। ये सभी प्रकृति के माध्यम से ही मनुष्य को प्राप्त होते हैं।
प्रकृति के निकट रहता ही मनुष्य सभ्य बना है। यह बात अलग है आज का मनुष्य निरंतर प्रकृति से दूर होता जा रहा है। जितना वह प्रकृति से दूर हो रहा है उतना ही वह रोगों से ग्रस्त हो रहा है। उसका स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है और उसकी जीवन शैली में बिगड़ती जा रही है। उसकी आयु घटती जा रही है। मनुष्य आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है और अपने विनाश को नजदीक ला रहा है। यदि मनुष्य को अस्तित्व को बचाना है तो उसे प्रकृति को सहचरी बनाये रखना होगा।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में ‘वसंत आया’ और ‘तोड़ो’ ये दो कवितायें ‘रघुवीर सहाय’ ने दो कवितायें प्रस्तुत की हैं।
‘वसंत आया’ कविता में वसंत ऋतु के आगमन और उसके सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि को अचानक पता चलता है कि वसंत ऋतु का आगमन हो गया है, जब उसे मौसम मे परिवर्तन होता है। वो अपने घर जाकर इसकी पुष्टि भी कर लेता था।
‘तोड़ो’ कविता के माध्यम से कवि ने एक प्रतीकात्मक कविता प्रस्तुत की है। कवि का कहना है कि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊस और बंजर को तोड़ना पड़ता है। तभी खेतों में फसल लहराती है। उसी प्रकार अपने अपने मन में नवीन विचारों के सृजन के लिए पुराने और बंजर विचारों को त्यागना और तोड़ना पड़ता है, सभी नवीनता का सृजन होगा।रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक जाने-माने हस्ताक्षर रहे हैं। जिनका जन्म 1929 में लखनऊ उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर थे।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘हंसो-हंसो जल्दी हंसो’, ‘लोग भूल गए हैं’, ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ आदि के नाम प्रमुख हैं। रघुवीर सहाय रचनावली नाम से प्रकाशित हुई छह खंडों के काव्य संग्रह में उनकी सभी रचनाओं को संकलित किया गया है। वह साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किए जा चुके हैं। सन् 1990 में उनका निधन हो गया था।

संदर्भ पाठ :

रघुवीर सहाय – वसंत आया/तोड़ो (कक्षा – 12, पाठ – 6, अंतरा)

 

इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

यह झूठे बंधन टूटें, तो धरती को हम जानें। यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है?

कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से हुआ। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?

भाव स्पष्ट कीजिए। मिट्टी में रस होगा ही, जब वह पोसेगी बीज को, हम उसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को, गोड़ो गोड़ो गोड़ो

पत्थर’ और ‘चट्टान’ किसके प्रतीक है?

‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है?

किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है?

अलंकार बताइए। (क) बड़े-बड़े पिपराए पत्ते। (क) कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो। (ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई चली गई। (घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल।

कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो, जैसे गरम पानी से नहाई हो, खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई, फिर चली गई। पंक्ति में भाव स्पष्ट कीजिए।

वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली?

 

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