सिंधु घाटी सभ्यता में भले ही कोई लिखित साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं, लेकिन अवशेषों के आधार पर जो धारणा बनाई गई है। वह पूरी तरह से गलत नहीं हो सकती। सिंधु घाटी सभ्यता में जो अवशेष प्राप्त होते हैं, वह भी एक प्रकार से साक्ष्य ही हैं।
साक्ष्य हमेशा लिखित रूप में नहीं होते। वस्तुओं के रूप में भी होते हैं। वस्तु अपने आप में एक साक्ष्य है। विद्वानों ने अवशेषों के साक्ष्य के आधार पर ही एक धारणा बनाई है, जो की प्रमाणिकता के बेहद निकट है, वह कोई कपोल कल्पना नहीं है।
इसलिए धारणा के संबंध में हमारे मन में कोई विशेष संदेह उत्पन्न नहीं होता क्योंकि यह वैज्ञानिकता की कसौटी पर कस कर बनाई गई धारणा है।
हाँ हमारे मन में यह प्रश्न अवश्य उभरता है कि यदि सिंधु घाटी सभ्यता अपने आप में विद्यमान थी तो विश्व में और भी अनेक सभ्यताएं रही होंगी और उन सभ्यताओं का सिंधु घाटी सभ्यता के साथ कैसा संबंध था। हमारे मन में यह जानने की भी उत्सुकता है। हालांकि सिंधु घाटी के समय की हमें इकलौती यही सभ्यता अभी तक प्राप्त हुई है। शायद भविष्य में हमें ऐसी अन्य कोई सभ्यता प्राप्त हो।
पाठ के बारे में…
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं |
पाठ संदर्भ :
‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)
इस पाठ के पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…
सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था कैसे?
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