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नदी, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में तर्क दें।
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अतीत में दबे पाँव, ओम थानवी, कक्षा-12 पाठ-3 वितान, कक्षा-12 पाठ-3 हिंदी वितान

नदी, कुएँ और स्नानागार तथा बेजोड़ जल निकासी व्यवस्था को देखते हुए, हाँ,  यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता एक जल संस्कृति थी। इसलिए हमारा जवाब उत्तर लेखक के पक्ष में होगा।
इस सभ्यता के अधिकतर जितने भी प्रमाण प्राप्त हुए हैं, वह सब जल और उसकी व्यवस्था से संबंधित ही रहे हैं। ऐसी जल व्यवस्था अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलती। आज के आधुनिक समय में भी ऐसी उन्नत जल प्रणाली देखने को नहीं मिलती।
सिंधु घाटी सभ्यता पूरी तरह जल केंद्रित सभ्यता रही है और जल नियोजन, संरक्षण, एवं निकास का जैसा सुंदर व्यवस्थापन सिंधु घाटी सभ्यता में देखने को मिलता है, वह अद्भुत है।
यहाँ पर एक ही पंक्ति में आठ स्नानागार बने हुए प्राप्त हुए हैंं। हर घर में स्नानागर होता था। सभी पक्की ईंटों से बने होते थे।
पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था की गई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता में बड़े-बड़े कुएं भी प्राप्त हुए हैं जिनमें पानी के संरक्षण की व्यवस्था की जाती थी। नगर में ऐसे टीले प्राप्त हुए हैं, जिनमें आपात स्थिति में पानी के संरक्षण और आपूर्ति की व्यवस्था की जाती थी।
इन सभी अवशेषों से यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि सिंधु घाटी की सभ्यता जल संस्कृति वाली सभ्यता थी।

पाठ के बारे में…

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं |

पाठ संदर्भ :

‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)

 

इस पाठ के पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मोहनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में उससे कोई भी धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कथा समूह में चर्चा करें।

इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा। परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे इतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

‘टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।’ – इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वह आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदान पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झांक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

पुरातन के किन चिन्हों के आधार पर हम कह सकते हैं कि – ”सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

सिंधु घाटी की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो राज पोषित या धर्म पोषित ना होकर समाज पोषित था, ऐसा क्यों कहा गया?

सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था कैसे?

 

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