इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे हमने कभी नहीं देखा लेकिन फिर भी हमारे मन में उसकी एक तस्वीर बन रही है। हमने भी ऐसा ही ऐतिहासिक स्थल नजदीक से देखा है, जो बेहद प्रसिद्ध है।
हमने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर शहर में बैजनाथ का शिव मंदिर देखा है। यह मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। ऐतिहासिक संदर्भ में देखा जाए तो इस मंदिर का निर्माण 1204 ईस्वी में हुआ था। यह मंदिर के निर्माण करवाने का श्रेय दो व्यापारियों को जाता है।
यह मान्यता भी है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने आरंभ करवाया था लेकिन वह इसे समय पर पूरा नहीं करवा सके और बाद में इन्हीं व्यापारियों ने उस मंदिर के निर्माण को पूरा करवाया।
स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर शिव मंदिर बेजोड़ है। इस मंदिर की दीवारों पर अनेक देवी-देवताओं की सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर की बाहरी और भीतरी सभी दीवारों पर तरह-तरह के सुंदर चित्र उकेरे गए हैं। मंदिर के द्वार के आगे नंदी बैल की विशाल काले पत्थर की प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर के चारों ओर सुंदर विशाल प्रांगण है, जिसमें अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां और छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। यह मंदिर महाभारत कालीन इतिहास का उत्कृष्ट प्रमाण है।
इसके अलावा हमने दिल्ली पुराना किला भी देखा है, जो एक ऐतिहासिक स्थल है। इसका निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था।
पाठ के बारे में…
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं |
पाठ संदर्भ :
‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)
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