‘टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।’ – इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।


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इस कथन का भाव यह है कि सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक तरह के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें स्तूप, स्नानागार, टूटे-फूटे भवन, चौड़ी और पतली सड़कें, गढ़, गलियां, औजार, सिलाई करने की सुईयां, बैलगाड़ियां, छोटी-छोटी नाव आदि प्रमुख हैं। यह सारे अवशेष प्रमाण के रूप में इधर-उधर बिखरे हुए प्राप्त हुए हैं। आज यह सभी साक्ष्य भले ही खंडहर का रूप हों, लेकिन यह अवशेष इस बात को प्रकट करते हैं कि अतीत काल में इन सभी वस्तुओं का उपयोग जीती-जागते मनुष्यों द्वारा किया जाता था यानी मकानों भवनों के जो अवशेष आज मिले हैं. उनमें कभी जीवन निवास करता था। उनमें मनुष्य की आवाजें, चहल-पहल देखी-सुनी जा सकतीं थीं।
इन सभी खंडहरों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह भी बोल पड़ेंगे और अपनी समय की कहानी को कहना शुरू कर देंगे। किसी भी काल में उस काल के बर्तन, मूर्तियां, औजार तथा अनेक दैनिक जीवन की वस्तुएं उस काल के ऐतिहासिक संदर्भ को मापने का सबसे अच्छा स्रोत होते हैं। इन सभी अवशेषों के माध्यम से उस बीते हुए अतीत की कहानी अपने आप ही प्रकट हो रही है। लेखक का यही कहने का अभिप्राय है। टूटे-फूटे मकानों के अवशेष और अन्य वस्तुएं देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह सभ्यता अभी बोल पड़ेगी।

पाठ के बारे में…

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं |

पाठ संदर्भ :

‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)

 

इस पाठ के पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मोहनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में उससे कोई भी धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कथा समूह में चर्चा करें।

नदी, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में तर्क दें।

इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा। परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे इतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वह आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदान पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झांक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

पुरातन के किन चिन्हों के आधार पर हम कह सकते हैं कि – ”सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

सिंधु घाटी की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो राज पोषित या धर्म पोषित ना होकर समाज पोषित था, ऐसा क्यों कहा गया?

सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था कैसे?

 

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