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पुरातन के किन चिन्हों के आधार पर हम कह सकते हैं कि – ”सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”
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अतीत में दबे पाँव, ओम थानवी, कक्षा-12 पाठ-3 वितान, कक्षा-12 पाठ-3 हिंदी वितान

सिंधु घाटी सभ्यता में पुरातन के ऐसे अनेक चिन्ह प्राप्त हुए हैं जिन से स्पष्ट होता है कि सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समय से अनुशासित सभ्यता थी। सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो नगर की नगरी अव्यवस्था उत्कृष्ट शैली की व्यवस्था थी।
अब तक विश्व में जितनी भी पुरातन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं, उनमें मोहनजोदड़ो सबसे अधिक विकसित सभ्यता का प्रमाण है। यहाँ पर उत्कृष्ट शैली में बनाए गए स्नानागार प्राप्त हुए हैं। पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था प्राप्त होती है। यहाँ पर सामूहिक पूजा स्थल मिले हैं, जो उत्कृष्ट शैली में बने थे। घरों की बनावट साधारण लेकिन उत्कृष्ट शैली की थी। सड़कें चौड़ी और पक्की बनी हुई थीं, जिनके दोनों तरफ नालियां थीं। भवनों के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया था।
कुछ ऐसे अप्राकृतिक टीले भी मिले हैं, जहां नदियों के पानी को सुरक्षित रखा जा सके।
खेती करने की सही तकनीक और अनाज आदि को संभाल कर रखने की तकनीक का भी जानकारी मिली है।
इस सभ्यता में बड़े-बड़े राज प्रसाद, मंदिर, धर्मस्थल, बड़े-बड़े राज महल आदि नहीं मिले हैं इससे स्पष्ट होता है यहां पर राजशाही का प्रभुत्व नहीं था, ना ही धर्म तंत्र का प्रभुत्व था।
सिंधु घाटी सभ्यता में जो भी वस्तुएं प्राप्त हुई है, वह साधारण लोगों के उपयोग में काम आने वाली वस्तुएं हैं, जिनमें खिलौने, बर्तन, कंघी, अनाज के बीज खुदाई के औजार आदि प्राप्त हुए हैं। यहां पर लड़ाई अथवा युद्ध में काम आए जाने वाले हथियार नहीं प्राप्त हुए हैं।
यहाँ के लोगों ने किसी भी शासक या राजा के बिना भी स्वयं को सामाजिक रूप से अनुशासित किया हुआ था।
इन सब बातों से प्रमाणित होता है कि पुरातन की सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।

पाठ के बारे में…

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं

पाठ संदर्भ :

‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)

 

इस पाठ के पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मोहनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में उससे कोई भी धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कथा समूह में चर्चा करें।

नदी, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में तर्क दें।

इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा। परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे इतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

‘टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।’ – इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वह आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदान पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झांक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

सिंधु घाटी की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो राज पोषित या धर्म पोषित ना होकर समाज पोषित था, ऐसा क्यों कहा गया?

सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था कैसे?

 

 

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