सिंधु घाटी की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो राज पोषित या धर्म पोषित ना होकर समाज पोषित था, ऐसा क्यों कहा गया?


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सिंधु घाटी की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो राज्य पोषित या धर्म पोषित ना होकर समाज पोषित था, ऐसा लेखक ने इसलिए कहा है क्योंकि लेखक के अनुसार सिंधु घाटी की सभ्यता साधन संपन्न सभ्यता तो थी लेकिन उसमें सिंधु घाटी के सामान्य लोगों की कला और रुचि का महत्व प्रकट होता था। सिंधु घाटी की सभ्यता के जो भी नगर नियोजन योजना है, उस का केंद्र बिंदु आम जन अभिरुचि और उसके उपयोग पर आधारित था।
यहाँ का नगर नियोजन ऐसा था, जहाँ पर धातु और पत्थर की मूर्तियां सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन और वास्तुकला में धातु और पत्थर की मूर्तियों, मृदमंग  और उनके ऊपर मनुष्य आदि के चित्र, वनस्पति और पशु पक्षियों की छवियां, मोहरे आदि तथा बेहद बारीकी से उत्पन्न किए गए खिलौने, तरह-तरह के आभूषण, केश विन्यास आदि सिंधु घाटी के आमजन अभिरुचि को प्रदर्शित करने वाली वस्तुएं थीं।
इस सभ्यता में धर्म तंत्र या राज तंत्र की भव्यता को प्रकट करने वाली चीजों की प्राप्ति नहीं हुई है।
इस सभ्यता में ना तो बड़े-बड़े राजमहल और ना ही बड़े बड़े मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल प्राप्त हुए हैं। जो भी चीजें प्राप्त हुई हैं वह आम जनजीवन के दैनिक उपयोग से जुड़ी वस्तुएं हैं और इन सभी वस्तुओं में उनकी सौंदर्य बोध प्रकट होता है।
इस बात से स्पष्ट होता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता उसका सौंदर्य बोध है, जो राज पोषित या धर्म घोषित ना होकर समाज पोषित थी।
हम यह भी मान सकते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता संस्था का समर्थन करती थी, जिसमें शक्ति के बल पर कोई कार्य नहीं किया जाता था बल्कि आपसी सोच समझ के कार्य किए जाते थे। वहां पर कोई राजा या शासक प्रमुख नहीं होता था। ना ही व्यर्थ के आडंबर होते थे। सिंधु घाटी का समाज स्वयं को अनुशासित करने वाला समाज था।

पाठ के बारे में...

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता और उसकी ऐतिहासिकता का वर्णन किया है। जिसने सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं का विवेचन किया है और बताया है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद हमें क्या-क्या जानकारी मिली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने तत्कालीन स्वरूप में कैसी थी।ओम थानवी एक पत्रकार और लेखक हैं, जो अनेक तरह के निबंध और लेख आदि लिख चुके हैं। वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। वह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) पर आधारित लेखन के लिए विशेषज्ञ माने जाते हैं  |

पाठ संदर्भ :

‘अतीत में दबे पाँव’ लेखक – ओम थानवी, (कक्षा – 12 पाठ – 3, वितान)

 

इस पाठ के पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…

सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है, सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मोहनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में उससे कोई भी धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कथा समूह में चर्चा करें।

नदी, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में तर्क दें।

इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा। परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे इतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

‘टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।’ – इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

यह सच है कि यहां किसी आंगन की टूटी फूटी सीढ़ियां अब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वह आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदान पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झांक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

पुरातन के किन चिन्हों के आधार पर हम कह सकते हैं कि – ”सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था कैसे?

 

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