दत्ताजी राव ने पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को झूठ का सहारा लेना पड़ा था। यदि भाई झूठ का सहारा ना लेते तो आगे का घटनाक्रम वैसा नहीं होता, जैसा हुआ है। लेखक अशिक्षित ही रह जाता और उसका आगे का जीवन खेती के कार्यों में ही बीतता।
यदि लेखक और उसकी माँ झूठ का सहारा ना लेते और दत्ताजी राव को बोलते और दत्ता जी राव लेखक के पिता को बुलाकर ना डांटते तो लेखक के पिता लेखक को कृषि के कार्य में झोंकने के लिए स्वतंत्र रहते। लेखक विरोध नही कर पाता और वह
इस तरह हमेशा के लिए कृषि और घर के कामकाज में ही सिमट कर रह जाता। लेखक अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर पाता। वह शिक्षा हासिल नहीं कर पाता और फिर शायद एक प्रेरणादायक कहानी नहीं बन पाती जो कि यह कहानी बनी।
पाठ के बारे में…
‘जूझ’ पाठ लेखक ‘आनंद यादव’ द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने बचपन के संघर्षों का वर्णन किया है। ग्रामीण और किसान पृष्ठभूमि से होने के कारण उनके पिता ने उन्हें शिक्षा की जगह कृषि कार्य में लगने के लिए जोर दिया। लेकिन लेखक शिक्षा प्राप्त करना चाहता था और इसी कारण उसे अपने जीवन में पाठशाला जाने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए जूझना पड़ा यानि अनेक तरह के संघर्ष करने पड़े। वह अपने संघर्ष में सफल भी हुआ और उसने शिक्षित होने में सफलता प्राप्त की।
संदर्भ पाठ :
‘जूझ’, लेखक – आनंद यादव, (कक्षा – 12, पाठ – 2, वितान)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
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