हमारे ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था जबकि लेखक के पिता का रवैया गलत था क्योंकि शिक्षा प्राप्त करना जीवन का बेहद महत्वपूर्ण कार्य है। लेखक ने इसका महत्व समझा और दत्ता जी राव ने भी शिक्षा का समर्थन किया।
लेखक का पिता लेखक को शिक्षा हासिल करने से वंचित करना चाहता था। लेखक के पिता की दृष्टि में शिक्षा का कोई महत्व नहीं था। वह लेखक को कृषि के कार्यों में लगाना चाहता था, जबकि लेखक का मानना था कि खेती के काम में जीवन भर मेहनत करने के बावजूद भी कुछ नही मिलने वाला, जबकि यदि वह पढ़ लिख लेगा तो उसकी अच्छी नौकरी लग सकती है अथवा वह कोई व्यापार आदि करके अपने जीवन को संवार सकता है।
खेती करके उसे यह सब नहीं प्राप्त होने वाला और वह अनपढ़ ही रह जाता। उसका यही विचार जब दत्ता जी को पता चला तो उन्होंने लेखक का समर्थन किया। लेखक के पिता ने लेखक के विद्यालय जाने पर रोक लगा दी थी और जब इस बात का पता दत्ता जी राव को चला तो उन्होंने लेखक के पिता को बुलाकर ना केवल उसे डांटा बल्कि अपने बेटे को अगले दिन से ही विद्यालय भेजने के लिए कहा।
दत्ताजी राव का रवैया इस संबंध में बिल्कुल सही था और उन्होंने लेखक का समर्थन करके सही कार्य किया।
पाठ के बारे में…
‘जूझ’ पाठ लेखक ‘आनंद यादव’ द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने बचपन के संघर्षों का वर्णन किया है। ग्रामीण और किसान पृष्ठभूमि से होने के कारण उनके पिता ने उन्हें शिक्षा की जगह कृषि कार्य में लगने के लिए जोर दिया। लेकिन लेखक शिक्षा प्राप्त करना चाहता था और इसी कारण उसे अपने जीवन में पाठशाला जाने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए जूझना पड़ा यानि अनेक तरह के संघर्ष करने पड़े। वह अपने संघर्ष में सफल भी हुआ और उसने शिक्षित होने में सफलता प्राप्त की।
संदर्भ पाठ :
‘जूझ’, लेखक – आनंद यादव, (कक्षा – 12, पाठ – 2, वितान)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
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