जूझ’ शीर्षक पाठ के कथानक से बिल्कुल मेल खाता है। पाठ का कथानक जैसा होता है। उसी के इर्द-गिर्द उसी को केंद्र में रखकर शीर्षक का निर्माण किया जाता है ताकि शीर्षक से कथानक की विषय वस्तु का आभास हो सके।
‘जूझ’ शीर्षक भी इसी गुण को प्रकट करता है। यह एक ऐसे नायक कहानी है, जिसने अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियों में शिक्षा पाने के लिए संघर्ष किया। इसीलिए यह शीर्षक कथा की सार्थकता को सिद्ध करता है।
‘जूझ’ शब्द का अर्थ संघर्ष के संदर्भ में लिया जाता है। इस कथा का कथा नायक जोकि स्वयं लेखक है, वह भी अपने बचपन में अनेक संघर्षों से गुजरा। पढ़ाई के प्रति रुचि होने के बावजूद उसे पढ़ाई से विमुख होने की नौबत आ गई थी। लेकिन उसने पढ़ाई के प्रति अपनी लगन के कारण पढ़ाई से स्वयं को दूर नहीं होने दिया।
लेखक यानि कथानायक को अपने जीवन में शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तर पर जूझना पड़ता है। वो व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर, विद्यालय के वातावरण के स्तर पर तथा आर्थिक स्तर पर कई तरह के स्तरों पर जूझता है।
कथा का शीर्षक ‘जूझ’ कथानायक के संघर्ष को प्रकट करता है और यह शीर्षक लेखक की केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को भी उजागर करता है, इसीलिए यह शीर्षक पूरी तरह उचित है।
पाठ के बारे में…
‘जूझ’ पाठ लेखक ‘आनंद यादव’ द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने बचपन के संघर्षों का वर्णन किया है। जब उन्हें जब ग्रामीण और किसान पृष्ठभूमि से होने के कारण उनके पिता ने उन्हें शिक्षा की जगह कृषि के कार्य लगने के लिए जोर दिया। लेकिन लेखक शिक्षा प्राप्त करना चाहता था और इसी कारण उसे अपने जीवन में पाठशाला जाने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए जूझना पड़ा यानि अनेक तरह के संघर्ष करने पड़े। वह अपने संघर्ष में सफल भी हुआ और उसने शिक्षित होने में सफलता प्राप्त की।
संदर्भ पाठ :
‘जूझ’, लेखक – आनंद यादव, (कक्षा – 12, पाठ – 2, वितान)
इस पाठ के अन्य प्रश्न उत्तर…
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
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