सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?


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हर व्यक्ति के अंदर सत्य होता है, लेकिन सत्य प्रबल होकर तब ही दिखता है जब सत्य के मार्ग पर दृढ़ निश्चय कर चला जाता है। यदि परिस्थितियां सत्य के विरोध में आ जाएं और सत्य को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाएं, यदि झूठ सत्य पर भारी पड़ जाए तो सत्य शीघ्रता से ओझल हो जाता है।
सत्य हर समय सामने दिखे यह आवश्यक नहीं क्योंकि वह स्थिर नहीं रह पाता। सत्य को स्थिर रखने के लिए, उसे कायम रखने के लिए सत्य का पालन करने वाले को दृढ़ निश्चयी होना पड़ता है। जब सत्य पालन करने वाला दृढ़ निश्चय होकर अपनी संकल्प शक्ति से सत्य को संभाल कर रखता है तो सत्य हमेशा दिख सकता है। नहीं तो सत्य को यदि तोड़ा मरोड़ा जाएगा, यदि पर झूठ हावी हो जाएगा तो सत्य उज्जवल हो जाता है। इसीलिए कवि के अनुसार सत्य के पालन करने वालों के आचरण के अनुसार से सत्य कभी दिखता है तो कभी ओझल हो जाता है।
महाभारत के संदर्भ में कहा जाए तो युधिष्ठिर में पूरे जीवन भर सत्य का पालन किया इसलिए उनके सामने से सत्य कभी भी ओझल नहीं हुआ। सब लोग सत्य का हमेशा पालन नहीं कर पाते इसीलिए उनके सामने से सत्य ओझल हो जाता है।

पाठ के बारे में…

पाठ में ‘एक कम’ कविता के माध्यम से कवि ने भारत देश की आजादी के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों का वर्णन किया है। कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने जैसा सोचा था, आजादी मिलने के बाद वैसा नहीं हुआ। देश में ईमानदारों की जगह बेईमान लोगों का प्रभाव हो गया। लोगों में आपसी भाईचारे की भावना खत्म हो गई और उसका स्थान धोखाधड़ी तथा आपसी खींचतान ने ले लिया। लोग अपने स्वार्थ में लिप्त होते गए।
‘सत्य’ कविता के माध्यम से लेखक ने कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन की सत्यता को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए महाभारतकालीन पौराणिक अतीत का सहारा लिया है।’विष्णु खरे’ हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। जिनका जन्म मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सन 1940 को हुआ था। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादन कार्य कार्य किया। इसके अलावा उन्होंने कविताएं, आलोचना आदि जैसी विधाओं में अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। उनकी उनका निधन 2018 में हुआ था।

संदर्भ पाठ :

विष्णु खरे – एक/सत्य (कक्षा -12, पाठ – 5, अंतरा)

 

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इस पाठ के दूसरे प्रश्न उत्तर देखें…

‘सत्य की राह पर चल, अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़’, इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।

कविता में बार-बार प्रयुक्त ‘हम’ कौन हैं और उसकी उसकी चिंता क्या है?

युधिष्ठिर’ जैसा संकल्प से क्या अभिप्राय है?

सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है। युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं? महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।

शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। (ख) कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है, पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ, मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है। (ग) मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं। मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम कम से कम एक आदमी से तो निश्चिंत रह सकते हो।

भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। (क) 1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीकों से आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है। (ख) मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ, कंगाल या कोढ़ी या मैं भला-चंगा हूँ और कामचोर और एक मामूली धोखेबाज (ग) तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा, निर्लज्ज और निराकांक्षी, मैने हटा लिया अपने आपको हर होड़ से

‘मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?

1947 से लोग अनेक तरीकों से मालामाल हुए किंतु विमुद्रीकरण होने से उन स्थितियों में बदलाव आया या नहीं?

हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होने के लिए किन-किन तरीकों की ओर संकेत किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

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