‘मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?


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‘मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं’ इन पंक्तियों का आशय यह है कि कवि इन पंक्ति के माध्यम से उन लोगों को संबोधित कर रहा है, जो लोग मालामाल बनने के लिए भ्रष्टाचार और बेईमानी के रास्ते पर चल रहे हैं। कवि ऐसे रास्ते पर नहीं चल रहा, इसलिए वह भ्रष्टाचार और बेईमानी में लिप्त लोगों को यह कहना चाहता है कि तुम लोगों को मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं।
मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं हूँ, क्योंकि मेरा और तुम्हारा रास्ता अलग-अलग है। भ्रष्टाचार और बेईमानी तथा स्वार्थपरता की दौड़ में कवि उन लोगों के साथ नहीं है, यह बात कवि उन लोगों को बताना चाहता है।
कवि कहता है कि वह उन लोगों के विरुद्ध आवाज नहीं उठा पा रहा इसलिए वह उन लोगों का विरोधी भी नहीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह उन लोगों के हिस्से में अपनी हिस्सेदारी चाहता है। वह उन लोगों का हिस्सेदार भी नहीं बनना चाहता और ना ही वो उन लोगों से किसी तरह की ओर होड़ करना चाहता है।

पाठ के बारे में…

पाठ में ‘एक कम’ कविता के माध्यम से कवि ने भारत देश की आजादी के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों का वर्णन किया है। कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने जैसा सोचा था, आजादी मिलने के बाद वैसा नहीं हुआ। देश में ईमानदारों की जगह बेईमान लोगों का प्रभाव हो गया। लोगों में आपसी भाईचारे की भावना खत्म हो गई और उसका स्थान धोखाधड़ी तथा आपसी खींचतान ने ले लिया। लोग अपने स्वार्थ में लिप्त होते गए।

‘सत्य’ कविता के माध्यम से लेखक ने कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन की सत्यता को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए महाभारतकालीन पौराणिक अतीत का सहारा लिया है।

‘विष्णु खरे’ हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। जिनका जन्म मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सन 1940 को हुआ था। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादन कार्य कार्य किया। इसके अलावा उन्होंने कविताएं, आलोचना आदि जैसी विधाओं में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। उनकी उनका निधन 2018 में हुआ था।

संदर्भ पाठ :

विष्णु खरे – एक/सत्य (कक्षा -12, पाठ – 5, अंतरा)

 

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इस पाठ के दूसरे प्रश्न उत्तर देखें…

‘सत्य की राह पर चल, अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़’, इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।

कविता में बार-बार प्रयुक्त ‘हम’ कौन हैं और उसकी उसकी चिंता क्या है?

युधिष्ठिर’ जैसा संकल्प से क्या अभिप्राय है?

सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?

सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है। युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं? महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।

शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। (ख) कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है, पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ, मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है। (ग) मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं। मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम कम से कम एक आदमी से तो निश्चिंत रह सकते हो।

भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। (क) 1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीकों से आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है। (ख) मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ, कंगाल या कोढ़ी या मैं भला-चंगा हूँ और कामचोर और एक मामूली धोखेबाज (ग) तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा, निर्लज्ज और निराकांक्षी, मैने हटा लिया अपने आपको हर होड़ से

1947 से लोग अनेक तरीकों से मालामाल हुए किंतु विमुद्रीकरण होने से उन स्थितियों में बदलाव आया या नहीं?

हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होने के लिए किन-किन तरीकों की ओर संकेत किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

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