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‘रीढ़ की हड्डी’ में उमा की माँ अपने बेटी को देखने वाले के सामने एक बार भी नही आती। क्या उसका व्यवहार उचित था? इसमें उसकी क्या विशेषता हो सकती हैं। क्या समाज में हर माँ को ऐसा करनी चाहिए।​
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जगदीश चंद्र माथुर, रीढ़ की हड्डी

‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में उमा की माँ अपनी बेटी को देखने वालों के सामने एक बार भी इसलिए नहीं आती क्योंकि वह पुरानी विचारों से ग्रस्त है। लड़की उमका की माँ का नाम ‘प्रेमा’ है, जो बहुत अधिक पढ़ी लिखी स्त्री नहीं है।

प्रेमा के लिये स्त्री की पढ़ाई के नजरिये से ‘अ-आ’ पढ़ लेना ही काफी था। अपनी लड़की उमा की बीए तक की पढ़ाई उसके अनुसार समझ में नहीं आती थी।

एकांकी में प्रेमा अपने पति से कहती है कि हमारा जमाना ही अच्छा था जहाँ लड़की ने ‘अ’ और ‘इ’ पढ़ लिया, गिनती सीख लीष बस बहुत हो गया। इसी कारण वह अपनी लड़की को देखने वालों के सामने संकोच भाव के कारण नहीं आती। हालांकि उसका ऐसा व्यवहार करना उचित नहीं था क्योंकि आज के समय में यह व्यवहार बिल्कुल भी ठीक नहीं है। आज के समय में हर माँ को अपनी लड़की रिश्ता करते समय उसे देखने आने वालों के सामने आना चाहिए और उनके खुल कर बात करनी चाहिए ताकि की लड़की का रिश्ता सही जगह पर हो।

 

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