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‘मैं स्वीकार करूं, मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है?’ प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
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कक्षा-12 पाठ-4 अंतरा, कक्षा-12 पाठ-4 हिंदी, केदारनाथ सिंह, बनारस/दिशा

मैं स्वीकार करूं, मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है?’ ‘दिशा’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि केदारनाथ सिंह ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि अपने लक्ष्य के प्रति व्यक्ति की लगन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है।
कवि जानता है कि हिमालय उत्तर दिशा में है और वह बच्चे से इस बारे में पूछता है तो बच्चे को हिमालय उत्तर दिशा में होने से कोई मतलब नहीं।
कवि को पता था कि हिमालय उत्तर दिशा में है लेकिन बच्चे द्वारा उसकी विपरीत दिशा में हिमालय होने का भाव प्रकट होने से कवि को पहली बार लगा कि मैंने पहली बार जाना कि हिमालय किधर है। क्योंकि यह बच्चे की पतंग उड़ाने के प्रति अपनी लगन को प्रकट करता है। बच्चा तो बस अपनी पतंग को प्राप्त करना चाहता है और इसीलिए उसी दिशा में चला जा रहा है, जहां उसकी पतंग जा रही है। हिमालय की दिशा से उसका कोई लेना-देना नहीं, उसके लिए पतंग महत्वपूर्ण है।ष उसी तरह व्यक्ति के जीवन में उसके लक्ष्य महत्वपूर्ण होने चाहिए। बाकी बातें गौण हैं।

पाठ के बारे में :
‘बनारस’ और ‘दिशा’ इन दो कविताओं मेंं ‘बनारस’ कविता के माध्यम से कवि ने प्राचीनतम नगरी बनारस के सांस्कृतिक वैभव और ठेठ बनारसीपन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने आस्था की नगरी बनारस की संस्कृति और वहाँ पर उत्पन्न होने वाली भीड़ के विषय में वर्णन किया है।
‘दिशा’ कविता के माध्यम से उन्होंने बाल मनोविज्ञान को उकेरा है।केदारनाथ सिंह हिंदी के जाने-माने कवि रहे हैं। इनका जन्म बलिया जिले के चकिया गाँव में 1934 में हुआ था। वह मानवीय संवेदनाओं से भरपूर कविता लिखते रहते थे। उनकी मृत्यु 2018 में हुई।

संदर्भ पाठ : 

केदारनाथ सिंह, कविता – ‘बनारस’/’दिशा’ (कक्षा – 12 पाठ – 4, अंतरा)

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

बच्चे का इधर-उधर कहना क्या प्रकट करता है?

शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। (क) यह धीरे-धीरे होना धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय दृढ़ता से बांधे हैं समूचे शहर को। (ख) अगर ध्यान से देखो, तो यह आधा है, और आधा नही है। (ग) अपनी एक टांग पर खड़ा है ये शहर अपनी दूसरी टांग से बिल्कुल बेखबर।

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