‘बनारस’ कविता में ‘सई सांझ’ में घुसने पर यानी कवि के अनुसार बनारस की शाम के बनारस शहर में प्रवेश करने पर बनारस शहर की निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है…
- शाम के समय बनारस के मंदिरों में हो रही आरती और घंटियों की ध्वनि पूरे वातावरण को दिव्यता से गुंजायमान कर देती है।
- गंगा पर हो रही आरती के आलोक में बनारस नगर और अधिक भव्य एवं दिव्य हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बनारस शहर कभी आधा जल में है तो कभी आधे जल के ऊपर तैर रहा है।
- बनारस के घाटों में चारों तरफ धार्मिक परंपराएं रीति-रिवाज निभाये जा रहे हैं। कहीं पर पूजा और मंत्रों के उच्चारण सुनाई दे रहे हैं, तो कहीं पर घाटों पर शवों का दाह संस्कार हो रहा है। इस तरह बनारस में उल्लास एवं अवसान दोनों तरह के रूप देखने को मिलते हैं।
- यहाँ पर पूजा और धार्मिक कर्मकांडों के रूप में जीवन की पूर्णता भी देखने को मिलती है तो शव दाह संस्कार के रूप में जीवन की रिक्तिता भी देखने को मिलती है।
- बनारस शहर आधुनिकता एवं प्राचीनता का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है। यहाँ पर सभी पुरानी प्राचीन मान्यताएं अभी भी जीवित हैं। प्राचीन धरोहरें एवं विरासतें आदि सभी अपने पूर्व रूप में हैं, लेकिन यहाँ पर धीरे-धीरे नवीनतम बदलाव भी हो रहे हैं। इस तरह यहाँ पर प्राचीनता एवं आधुनिकता का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।
पाठ के बारे में :
‘बनारस’ और ‘दिशा’ इन दो कविताओं मेंं ‘बनारस’ कविता के माध्यम से कवि ने प्राचीनतम नगरी बनारस के सांस्कृतिक वैभव और ठेठ बनारसीपन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने आस्था की नगरी बनारस की संस्कृति और वहाँ पर उत्पन्न होने वाली भीड़ के विषय में वर्णन किया है।
‘दिशा’ कविता के माध्यम से उन्होंने बाल मनोविज्ञान को उकेरा है।
केदारनाथ सिंह हिंदी के जाने-माने कवि रहे हैं। इनका जन्म बलिया जिले के चकिया गाँव में 1934 में हुआ था। वह मानवीय संवेदनाओं से भरपूर कविता लिखते रहते थे। उनकी मृत्यु 2018 में हुई।
संदर्भ पाठ :
केदारनाथ सिंह, कविता – ‘बनारस’/’दिशा’ (कक्षा – 12 पाठ – 4, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
‘धीरे-धीरे’ होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है?
बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? ‘धीरे-धीरे’ से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?