‘धीरे-धीरे’ होने की सामूहिक लय में पूरा का पूरा बनारस ही बंधा हुआ है। बनारस कविता में कवि ‘धीरे-धीरे’ होने की इस सामूहिक लय को बनारस की विशेषता बताता है। कवि के अनुसार धीरे-धीरे होने की यह सामूहिक लय ही बनारस को एक विशेष मजबूती प्रदान करती है।
बनारस में जो भी घटित होता है. वह धीरे-धीरे होता है। यहाँ पर जो भी परिवर्तन हो रहे हैं, वह सब धीरे-धीरे हो रहे हैं। इसी कारण प्राचीन काल से जो चीजें यहां पर विद्यमान थीं, वह अभी भी विद्यमान हैं। बनारस की पुरानी सभ्यता और संस्कृति पूरी तरह नष्ट नहीं हुई है।
गंगा के घाटों पर आज भी नावे वहीं पर बँधी हुई मिल जाएंगी, जहाँ वह सदियों से बंधी चली आ रही थीं। बनारस में तुलसीदास जी की खड़ाऊ भी उसी स्थान पर सुरक्षित हैं, जहाँ पर सदियों पहले थीं।
बनारस में जो भी परिवर्तन हो रहे हैं, वह संसार के अन्य भागों की तरह तेज गति से ना होकर धीरे-धीरे हो रहे हैं। इसी कारण इन परिवर्तनों में एक सामूहिक लय उत्पन्न हो गई है। जिस कारण इस सामूहिक लयबद्धता में पूरा बनारस शहर बँध गया है और अधिक मजबूत हुआ है।
अपने आसपास हो रहे तेज बदलावों से बनारस अछूता है। यहां की परंपराएं, मान्यताएं, धार्मिक आस्थायें और विरासत आदि सभी सुरक्षित हैं। उन पर तेजी से हो रहे बदलाव का असर नहीं चढ़ा है।
पाठ के बारे में :
‘बनारस’ और ‘दिशा’ इन दो कविताओं मेंं ‘बनारस’ कविता के माध्यम से कवि ने प्राचीनतम नगरी बनारस के सांस्कृतिक वैभव और ठेठ बनारसीपन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने आस्था की नगरी बनारस की संस्कृति और वहाँ पर उत्पन्न होने वाली भीड़ के विषय में वर्णन किया है।
‘दिशा’ कविता के माध्यम से उन्होंने बाल मनोविज्ञान को उकेरा है।
केदारनाथ सिंह हिंदी के जाने-माने कवि रहे हैं। इनका जन्म बलिया जिले के चकिया गाँव में 1934 में हुआ था। वह मानवीय संवेदनाओं से भरपूर कविता लिखते रहते थे। उनकी मृत्यु 2018 में हुई।
संदर्भ पाठ :
केदारनाथ सिंह, कविता – ‘बनारस’/’दिशा’ (कक्षा – 12 पाठ – 4, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? ‘धीरे-धीरे’ से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?
बनारस की पूर्णता और रिक्तिता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है?