बनारस की पूर्णता और रिक्तिता को कवि ने अलग-अलग रूपों में दिखाया है। कवि के अनुसार बनारस की पूर्णता उसके उल्लास और उत्साह में है। बनारस हर स्थिति में प्रसन्न रहता है। यहां पर अनेक तरह के कष्ट और कठिनाइयां है, उसके बाद भी यहां के लोग उत्साह और आनंद से भरपूर रहते हैं। यह शहर उल्लास और आनंद का प्रतीक है। यही बनारस की पूर्णता है।
बनारस की रिक्तिता को कवि ने मृत शरीरों के माध्यम से दर्शाया है। कवि के अनुसार बनारस में गंगा के घाटों पर रोज कितने ही शव दाह संस्कार के लिए आते हैं। यह शव जब चार कंधों पर अपनी अंतिम यात्रा के लिए निकल रहे होते हैं, तो उस समय बनारस के जीवन की रिक्तिता का एहसास होता है। यह दृश्य जीवन के मृत्यु रूपी परम सत्य की याद दिलाता है। यही बनारस की रिक्तिता है।
इस तरह कवि ने बनारस के उल्लास और आनंद को उसकी पूर्णता तथा गंगा घाटों पर शव-दाह एवं मृत्यु रूपी सत्य को उसकी रिक्तिता के रूप में दिखाया है।
पाठ के बारे में :
‘बनारस’ और ‘दिशा’ इन दो कविताओं मेंं ‘बनारस’ कविता के माध्यम से कवि ने प्राचीनतम नगरी बनारस के सांस्कृतिक वैभव और ठेठ बनारसीपन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने आस्था की नगरी बनारस की संस्कृति और वहाँ पर उत्पन्न होने वाली भीड़ के विषय में वर्णन किया है।
‘दिशा’ कविता के माध्यम से उन्होंने बाल मनोविज्ञान को उकेरा है।
केदारनाथ सिंह हिंदी के जाने-माने कवि रहे हैं। इनका जन्म बलिया जिले के चकिया गाँव में 1934 में हुआ था। वह मानवीय संवेदनाओं से भरपूर कविता लिखते रहते थे। उनकी मृत्यु 2018 में हुई।
संदर्भ पाठ
केदारनाथ सिंह, कविता – ‘बनारस’/’दिशा’ (कक्षा – 12 पाठ – 4, अंतरा)
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