पर्वतीय स्थल की यात्रा का रोमांच का वर्णन :
यात्रा का अर्थ , यानि की अपनी जगह से कई दूर घूमने फिरने के लिए जाना ताकि हम अपनी इस भाग दौड़ भरी जिंदगी से कुछ समय के लिए निजात पा सके और अपने परिवार और प्रियजनों को समय दे सके । यात्रा से व्यक्ति को बहुत अच्छा महसूस होता है और सभी के साथ मिल जुलकर रहने का अच्छा समय भी मिलता है ।
यात्राओं का जीवन में अपना एक अलग ही महत्व है। व्यक्ति एक ही स्थान पर रह कर ऊब जाता है | उसमें कार्य करने की क्षमता तथा रूचि का ह्रास होता रहता है । ऐसे में पर्वतीय स्थान की यात्राएं उसके जीवन की नीरसता एवं बोझिलता को कम करके उसे फिर से अपने कार्य में जुटने के लिए रामबाण सिद्ध होती है ।
इस बार मैं अपने परिवार के साथ गर्मी की छुट्टियों में वैष्णवों देवी की यात्रा पर गया था , मेरी यह यात्रा बहुत ही रोमांचपूर्ण रही । जम्मू बस–स्टैंड से कटरा जाने के लिए हमें बस मिल गई वैसे मुझे बस में सफर करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है लेकिन उस दिन की बस की यात्रा ज़िंदगी में कभी भी नहीं भूल पाऊँगा। बस में बैठे यात्रियों की देवी की श्रद्धा थी और वह लोग ज़ोर ज़ोर से बोल रहे थे ‘जयकारा शेरा वाली का’, ‘बोल साँचे दरबार की जी’ , ‘सूचियाँ ज्योताँ वाली तेरी सदा ही जी’ जैसे नारों से सारा वातावरण श्रद्धामय हो गया था और सफर कब खत्म हो गया कि पता ही नहीं चला हम एक घंटे के बाद कटरा पहुँच गए।
फिर हमने वहाँ बाण गंगा में स्नान किया और पैदल चलना शुरू कर दिया । चारों तरफ हरे – भरे ऊँचे – ऊँचे वृक्षों से सजी पहाड़ियाँ को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह हमें ऊपर आने का निमंत्रण दे रही हो ।
हमने पैदल चलना शुरू कर दिया और रास्ते में खूब सारी खाने पीने के सामानों की दुकानें थी | हमने वहाँ से थोड़ा बहुत खाने का समान लिया और जब हम चलते – चलते थक जाते थे रास्ते में बैठ कर थोड़ा खा – पीकर फिर चल पढ़ते थे ।
तीन घंटे की यात्रा के बाद हम अर्द्ध कुंवारी पहुँचे । यहाँ पर भोजन की और रहने की बहुत ही अच्छी व्यवस्था थी । हम लोग घर से खाना बनाकर ले गए थे | हम सब ने मिलकर खाना खाया । थोड़ा विश्राम करने के बाद हम गर्भजून की ओर बढ़े ।
गर्भ गुफा के दर्शनों के लिए यात्री लाइनों में लगे हुए थे । अंदर से चिकने पत्थरों की यह गर्भ गुफा इतनी सँकरी थी कि यात्री इसमें से बाहर निकलने की कल्पना भी नहीं कर सकता परंतु माता की कृपा से प्रत्येक व्यक्ति सकुशल ‘जय माता की’ आवाज़ करता हुआ बाहर निकल रहा था ।
फिर हम आगे बड़े और भवन के मुख्य द्वार पर पहुँच गए पुजारी जी ने हमें नारियल तथा प्रसाद माँ की भेंट के रूप में दिया । फिर हमने माँ की गुफा के अंदर जाकर पिंडियों के दर्शन किए । यहाँ पर पहुँच कर मैं अपने आपको एकदम शांत और संतुष्ट महसूस कर रहा था ऐसा लग रहा था मानो मुझे सब कुछ मिल गया।
माँ के दर्शनों के बाद सारी थकान दूर हो गई थी । मेरी यह यात्रा वास्तव में अनूठी एवं चीर स्मरणीय थी।
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
अपने शीतकालीन अवकाश में कहाँ गए वर्णन अपने शब्दों लिखिए। (अनुच्छेद)