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चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर। पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।​
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डग मग, युगावतार गाँधी, सोहनलाल द्विवेदी

चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर। पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।​

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘सोहन लाल द्विवेदी’ द्वारा रचित ‘युगवतार गाँधी’ नामक कविता ही हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से सोहनलाल द्विवेदी ने कवि ने महात्मा गाँधी के महान व्यक्तित्व का वर्णन किया है। वे महात्मा गाँधी को सृजनकर्ता मानते थे और उन्हें युवावतार के रूप में देखते थे।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि गाँधीजी जिधर चल पड़ते थे, करोड़ों भारतवासी भी उन्हीं के पथ का अनुसरण करते हुए चल पड़ते थे। गाँधीजी की दृष्टि जिधर पड़ जाती थी, करोड़ों दृष्टियाँ भी उधर ही पड़ जाती थीं।

कवि के कहने का भाव यह है कि गाँधीजी का अनुसरण करने वाले करोड़ों भारतवासी थे, जो उनके पद चिन्हों पर चलते हुए उनका अनुसरण करते हुए उनके सिद्धांतों का पालन करते थे।

 

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