संत कबीर के इन दोहों के अर्थ इस प्रकार होंगे…
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
अर्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि हमेशा ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो सभी के मन को आनंदित करें, सभी को प्रसन्न रखे। ऐसी मीठी वाणी बोलने से ना केवल सुनने वाले आनंदित होता है, बल्कि बोलने वाले को भी मन प्रसन्न रहता है। इसीलिए मधुर वाणी बोल कर सब को प्रसन्न रखना चाहिए। मधुर वाणी बोलने से बोलने वाले और सुनने वाले सभी का मन शीतल रहता है।
काल्ह करै सौ आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब ।।
अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि किसी भी काम को भविष्य के लिए नहीं टालना चाहिए। जो काम कल करना है, वह आज ही कर देना चाहिए और जो काम आज करना है उसे अभी कर देना चाहिए। समय का कोई भरोसा नहीं। क्या पता पल भर में प्रलय हो जाए, इसलिए कोई भी काम टालना नहीं चाहिए। किसी भी काम को करने देरी न करके उसके तुरंत निपटा लेना चाहिए।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।
अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि केवल आकार में बड़े होने से कुछ नहीं होता। कर्मों से बड़ा होना चाहिए हमें उस खजूर के पेड़ की तरह बड़ा नहीं बनना है, जो देखने में तो बहुत बड़ा और ऊंचा होता है, लेकिन राहगीरों (राह चलते लोगों) को थोड़ी देर सुस्ताने के लिए उससे कोई छाया नही मिलती। वो किसी के काम नही आता। उस पर कल भले ही लग जाए लेकिन कोई उसे आसानी से तोड़ नहीं सकता क्योंकि बहुत ऊंचा होता है। कबीरदास कहते हैं हमें अपने कर्मों से बड़ा बनना चाहिए हमें अच्छे कर्म करना चाहिए और सभी के काम आ सकें, सभी की मदद कर सकें. ऐसा बड़ा बनना चाहिए।
दु:ख में सुमिरन सब करैं, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करैं, दुःख काहे को होय।।
अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि जीवन में दुख आने पर तो सभी भगवान को याद करते हैं, लेकिन भगवान को सुख में सब भूल जाते हैं और याद नहीं करते। यदि भगवान को याद करना है तो दुख और सुख दोनों में याद रख करना चाहिए। जो लोग सुख में भी भगवान को याद रखते हैं, उनके प्रति कृतज्ञ रहते हैं, उनके जीवन में कभी भी दुख नहीं आता।
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