मैने देखा एक बूंद’ कविता का मूल भाव
‘सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन’ अज्ञेय द्वारा रचित ‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता क्षण के महत्व को ही स्पष्ट करती है।
कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य यदि अपने स्वार्थ से अलग हटकर परमार्थ की ओर ध्यान दें यानि वह व्यष्टि से समष्टि की ओर अपना ध्यान केंद्रित करे, व्यष्टि का समष्टि में विलय दे तो उसका जीवन सार्थक हो जाता है।
यहाँ पर क्षण भर से तात्पर्य मनुष्य के जीवन से है। यानी वह अपने अच्छे कार्यों द्वारा अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
कवि कहते हैं कि यह संसार में प्रत्येक प्राणी नश्वर है और एक ना एक दिन उसे संसार से चले जाना है। मनुष्य इस नश्वरता के डर में न जीकर अपने इस क्षणभंगुर जीवन को अच्छे कर्मों द्वारा सार्थक बना सकता है, जिससे वह नश्वरता के डर से भी मुक्ति पाएगा।
कवि बूंद और सागर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि बूंद क्षण भर के लिए सागर से अलग होकर यह सीख देती है कि क्षण भर के लिए ही सही उसका अस्तित्व है। इस तरह वो अपने जीवन को सार्थक कर देती है। उसी तरह मनुष्य भी अपने नश्वरता वाले जीवन को अपने अच्छे कर्मों, अच्छे प्रयासों और दूसरों के काम आ कर सार्थक तक बना सकता है और इस तरह नश्वरता के दाग और भय से मुक्ति पा सकता है।
पाठ के बारे में…
‘यह दीप अकेला’ और ‘मैंने देखा एक’ बूंद इन दो कविताओं के माध्यम से कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने मनुष्य को दीप का प्रतीक बनाकर संसार में उसकी यात्रा का वर्णन किया है। कवि ने दीप एवं मनुष्य की तुलना करके दोनों के स्वभाव एवं गुणों की तुलना की है।
‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता में कवि ने समुद्र से अलग होती हुई बूंद की क्षणभंगुरता की व्याख्या की है और यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि क्षणभंगुरता बूंद की होती है, समुद्र की नहीं। उसी तरह संसार में क्षणभंगुरता मनुष्य की है, समाज या संसार की नहीं।
संदर्भ पाठ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय – यह दीप अकेला/ मैने देखा एक बूंद (कक्षा 12, पाठ -3, अंतरा)
इन्हें भी देखें…
सूने विराट के सम्मुख ___________ दाग से, पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
‘रंग गई क्षणभर ढलते सूरज की आग से’ पंक्ति के आधार पर बूंद के क्षण भर रंगने की सार्थकता बताइए।