यह मधु है, स्वयंकाल मौना का युग संचय,
यह गोरस-जीवन कामधेनु का अमृत पूत पय,
यह अंकुर फोड़ धरा को,रवि को तकता निर्भय
इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मधु यानी के शहर की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसके निर्माण की प्रक्रिया बेहद लंबी है। यह स्वयं को धीरे धीरे एकत्रित करता है। यानि कि शहद बनने की प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है, तब जाकर हमें शहद मिलता है।
जो गोरस हमें जीवन के रूप में विद्यमान कामधेनु गाय से प्राप्त होता है, वो गोरस अमृत के समान माना जाता है। इस गोरस का पान करने वाले देवता पुत्र होते हैं।
अंकुर की अपनी विशेषता यह है कि यह कठोर भूमि की छाती को अपने कोमल पत्तों से फाड़ कर बाहर निकलता है और सूर्य का सामना करने से भी नहीं डरता। नन्हां सा अंकुर स्वयं में इतना लघु होते हुए भी निर्भय होकर सूरज की तेज किरणों का सामना करता है।
पाठ के बारे में…
‘यह दीप अकेला’ और ‘मैंने देखा एक’ बूंद इन दो कविताओं के माध्यम से कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने मनुष्य को दीप का प्रतीक बनाकर संसार में उसकी यात्रा का वर्णन किया है। कवि ने दीप एवं मनुष्य की तुलना करके दोनों के स्वभाव एवं गुणों की तुलना की है।
‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता में कवि ने समुद्र से अलग होती हुई बूंद की क्षणभंगुरता की व्याख्या की है और यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि क्षणभंगुरता बूंद की होती है, समुद्र की नहीं। उसी तरह संसार में क्षणभंगुरता मनुष्य की है, संसार की नहीं।
संदर्भ पाठ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय – यह दीप अकेला/ मैने देखा एक बूंद (कक्षा 12, पाठ -3, अंतरा)
इन्हें भी देखें…
‘गीत’ और ‘मोती’ की सार्थकता किस से जुड़ी हुई है?