‘यह दीप अकेला है, पर इसको भी पंक्ति को दे दो’ के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय कैसे संभव है?


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इस कविता में कवि ने दीप को मनुष्य का प्रतीक बनाया है, जबकि पंक्ति को समाज का प्रतीक बनाया है। जिस तरह दीप को पंक्ति में रखने से वह अन्य दीपों के साथ मिलकर अधिक प्रकाश उत्पन्न करता है। उसी तरह मनुष्य को भी समाज के साथ जोड़ने से वह समाज के अन्य लोगों के साथ मिलकर अधिक उपयोगी होता है और समाज का कल्याण करता है।

दीप का पंक्ति में होना आवश्यक है, उसी तरह मनुष्य का समाज में होना आवश्यक है। दीप पंक्ति में स्थान पाकर अधिक बलशाली हो जाता है और अन्य दीपों दीपों के साथ मिलकर अधिक प्रकाश उत्पन्न करने की क्षमता ग्रहण कर लेता है। उसी तरह मनुष्य भी समाज में एकाकार होकर अधिक उपयोगी हो जाता है।
इस तरह व्यष्टि का समष्टि में मिलन होता है। जहाँ पर दीप और मनुष्य व्यष्टि का प्रतीक हैं, वही पंक्ति एवं समाज समष्टि का प्रतीक हैं।
अकेला दीप अथवा अकेला मनुष्य कुछ नहीं कर सकते, उनका पंक्ति और समाज में विलय होने से उनकी शक्ति का विस्तार होता है और वह समाज के लिए अधिक उपयोगी और अधिक क्षमतावान बनते हैं।

 

पाठ के बारे में…
‘यह दीप अकेला’ और ‘मैंने देखा एक’ बूंद इन दो कविताओं के माध्यम से कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय में मनुष्य को दीप का प्रतीक बनाकर संसार में उसकी यात्रा का वर्णन किया है। कवि ने दीप एवं मनुष्य की तुलना करके दोनों के स्वभाव एवं गुणों की तुलना की है।
‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता में कवि ने समुद्र से अलग होती हुई बूंद की क्षणभंगुरता की व्याख्या की है और यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि क्षणभंगुरता बूंद की होती है, समुद्र की नहीं। उसी तरह संसार में क्षणभंगुरता मनुष्य की है, संसार की नहीं।

 

संदर्भ पाठ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय – यह दीप अकेला/ मैने देखा एक बूंद (कक्षा 12, पाठ -3, अंतरा)

 

इन्हें भी देखें…

‘यह दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?

‘छड़ के महत्व’ को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।

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