‘यह दीप अकेला’ का प्रतीकात्मक अर्थ व्यक्ति के संदर्भ में बताया गया है।
कवि ने इस कविता में दीप को मनुष्य का प्रतीक बनाया है. जो इस संसार में अकेला आता है।
पंक्ति का अर्थ समाज से है अर्थात जिस तरह दीप को जलाकर पंक्ति में रख दिया जाता है, उसी तरह मनुष्य इस संसार में आकर समाज का एक भाग बन जाता है। दीप जब तक जलता है तब तक वह प्रकाश प्रदान करता है।
दीप तेल के कारण जलता है। मनुष्य अपने स्नेह रूपी तेल से जलता है, आचरण एवं स्वभाव रूपी प्रकाश फैलाता है।
दीप जब तक जलता है, उसकी लौ झुकती नहीं है, जो उसके गर्व को सूचित करती है। मनुष्य जब तक संसार में अपने कर्म को जब तक करता वह झुकता नहीं है और इससे कर्मशील मनुष्य का गर्व प्रकट होता है।
दीप की लौ कभी-कभी इधर उधर हिलती रहती है। उसी तरह मनुष्य का मन भी कभी-कभी इधर उधर भटकता रहता है।
इसी कारण कवि ने दीप को स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता कहा है।
पाठ के बारे में…
‘यह दीप अकेला’ और ‘मैंने देखा एक’ बूंद इन दो कविताओं के माध्यम से कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय में मनुष्य को दीप का प्रतीक बनाकर संसार में उसकी यात्रा का वर्णन किया है। कवि ने दीप एवं मनुष्य की तुलना करके दोनों के स्वभाव एवं गुणों की तुलना की है।
‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता में कवि ने समुद्र से अलग होती हुई बूंद की क्षणभंगुरता की व्याख्या की है और यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि क्षणभंगुरता बूंद की होती है, समुद्र की नहीं। उसी तरह संसार में क्षणभंगुरता मनुष्य की है, संसार की नहीं।
संदर्भ पाठ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय – यह दीप अकेला/ मैने देखा एक बूंद (कक्षा 12, पाठ -3, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
‘छड़ के महत्व’ को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।
सूने विराट के सम्मुख ___________ दाग से, पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।