निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(क) नत नयनों से आलोक उतर
(ख) श्रृंगार रहा जो निराकार
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
(घ) यदि धर्म, नत रहे सदा साथ
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ इस प्रकार होगा :
(क) नत नयनों से आलोक उतर
अर्थ : इस पंक्ति में कवि ने उस समय का वर्णन किया है, जब कवि की पुत्री सरोज अपने विवाह के अवसर पर नववधू बन कर श्रृंगार करके कवि के सामने आती है। पुत्री की आँखों में नववधू की स्वाभाविक लज्जा तथा संकोच का भाव उमड़ रहा था। विवाह की खुशी के कारण पुत्री की आँखों में चमक थी और वह चमक आँखों से उतर कर होठों तक पहुंच जाती है और पुत्री के होंठ कंपकंपाने लगते हैं।
(ख) श्रृंगार रहा जो निराकार
अर्थ : इस पंक्ति में कवि ने अपनी पुत्री के सौंदर्य और अपनी काव्य श्रंगार रचनाओं की तुलना की है। कवि की काव्य रचनाएं ऐसा श्रृंगार थीं, जो बिना आकार का था। कवि ने अपनी शृंगार रस से युक्त रचनाओं में जो श्रंगार भाव व्यक्त किए थे, जिस तरह की श्रंगार कल्पनाएं की थीं और सौंदर्य को अभिव्यक्त किया था, वह अब नववधू बनी पुत्री के रूप में साकार बन गया है। इस तरह कवि श्रंगार रचनाएं नववधू बनी पुत्री के रूप में साकार हो गईं हैं।
(ग) पर पाठ अन्य, अन्य कला
अर्थ :इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने अपनी पुत्री के सौंदर्य की तुलना ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ नामक ग्रंथ की नायिका शकुंतला से की है। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद माता विहीन हुई पुत्री का लालन-पालन स्वयं बड़े प्रेम भाव से किया था। पुत्री जब विवाह योग्य हुई तो उन्होंने बेहद हर्ष से अपनी पुत्री का विवाह किया। उन्होंने माता एवं पिता दोनों के रीति रिवाज निभाए।
कवि के अनुसार पिता द्वारा लालन पालन करना तथा माता के स्थान पर पिता द्वारा ही माता के सभी कर्तव्यों का निर्वाह करना शकुंतला से मिलता जुलता है। कवि का यह भी मानना है, कि पुत्री का व्यवहार और शिक्षा शकुंतला से बहुत अलग थी।
कवि के अनुसार दोनों में बहुत कुछ समानता भी है और बहुत कुछ अंतर भी है।
(घ) यदि धर्म नत रहे सदा साथ
अर्थ : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने अपने पिता धर्म निभाने की बात कही है। वह अपने पिता धर्म को पूर्ण करने के लिए दृढ़संकल्प हैं। पुत्री के विवाह के समय आवश्यकता पड़ने पर वह वह सभी कर्म भी निभाने के लिए तैयार हैं जो माता को निभाने थे। इसलिए माता की अनुपस्थिति में कवि माता और पिता दोनों के कर्म को निभा रहे हैं।
संदर्भ पाठ :
पाठ ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ – गीत गाने दो मुझे/सरोज स्मृति (कक्षा – 12, पाठ – 2, अंतरा।
‘सरोज स्मृति’ कविता में कवि ने अपनी दिवंगत पुत्री सरोज को केंद्रित करते अपने पुत्री के साथ अपने संबंधों, उसके विवाह के समय का वर्णन करने के साथ ही पुत्री सरोज के निधन के बाद एक पिता के मन की व्यथा और विलाप को प्रकट किया है।
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
‘वह लता वही की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?