मुझ भाग्यहीन की तू संबल’ निराला की यह पंक्ति क्या ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रम की मांग करती है?


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जी हाँ, ‘मुझे भाग्यहीन की तू संबल’ निराला की यह पंक्ति ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रम की मांग करती है। क्योंकि इन पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने बेटी के महत्व को ही स्पष्ट किया है। उन्होंने अपनी पुत्री को अपने जीवन में सब कुछ माना। उन्होंने अपनी बेटी को उतना ही महत्व दिया, जितना बेटे को दिया जाता है।

इस तरह उन्होंने अपनी बेटी को महत्व देकर अप्रत्यक्ष रूप से उस कार्यक्रम का ही समर्थन किया है, जिसमें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया जाता है।

कवि ने भी अपनी बेटी को का लालन-पालन प्रेम से किया था और उसे पढ़ाया लिखाया तथा बड़े ही हर्षोल्लास से उसका विवाह किया।

अपनी पत्नी की मृत्यु होने के बाद उनके जीवन में निराशा व्याप्त हो गई थी तब उन्होंने अपनी बेटी में ही अपने जीवन की आशा देखी थी। पत्नी की मृत्यु के बाद उनके लिए उनकी बेटी ही उनके जीने का सहारा थी, इसीलिए उन्होंने अपनी बेटी का विवाह तो कर दिया था, लेकिन वह अपनी बेटी के साथ उसी लगन से जुड़े रहे। उससे उनकी बेटी का महत्व प्रकट होता है और लोगों में यह संदेश जाता है कि बेटी भी जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी की बेटा।

इस तरह निराला की यह पंक्ति ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम का समर्थन करती है।

 

संदर्भ पाठ :

पाठ ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ – गीत गाने दो मुझे/सरोज स्मृति (कक्षा – 12, पाठ – 2, अंतरा।

‘सरोज स्मृति’ कविता में कवि ने अपनी दिवंगत पुत्री सरोज को केंद्रित करते अपने पुत्री के साथ अपने संबंधों,  उसके विवाह के समय का वर्णन करने के साथ ही पुत्री सरोज के निधन के बाद एक पिता के मन की व्यथा और विलाप को प्रकट किया है।

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

‘वह लता वही की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?

सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?

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