‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने अपनी पुत्री सरोज के लालन-पालन तथा अपनी पत्नी मनोहारी देवी के पालन-पोषण के प्रसंग का वर्णन किया है।
कवि की पत्नी की मृत्यु अकस्मात तो गई थी। तब उनकी पुत्री सरोज बेहद छोटी थी। उसका लालन-पालन उसके ननिहाल में नाना नानी के द्वारा किया गया था।
कवि ने इस पंक्ति को इसी प्रसंग के संदर्भ में कहा है। पहले कवि की पत्नी मनोहारी देवी का जन्म वहाँ हुआ अर्थात लता के रूप में वहाँ विकसित हुई। अपने माता पिता की छत्रछाया में पली-बढ़ी जब वह बड़ी हुई तब उनका कवि के साथ विवाह हुआ और तब सरोज का जन्म हुआ।
मनोहारी देवी की अकस्मात मृत्यु के बाद सरोज का लालन-पालन भी सरोज के माता पिता नाना नानी के घर में ही हुआ अर्थात एक ही घर में माँ एवं पुत्री दोनों का लालन-पालन हुआ। इस तरह सरोज की माँ लता ती तो सरोज कली थी।
पहले लता यानी सरोज की माँ मनोहारी देवी उसी घर में पली-बढ़ी जहाँ पर कली के रूप में सरोज का जन्म हुआ औरउसने अपना बाल्यकाल बिता कर युवावस्था में प्रवेश किया।
संदर्भ पाठ :
पाठ ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ – गीत गाने दो मुझे/सरोज स्मृति (कक्षा – 12, पाठ – 2, अंतरा)
‘सरोज स्मृति’ कविता में कवि ने अपनी दिवंगत पुत्री सरोज को केंद्रित करते अपने पुत्री के साथ अपने संबंधों, उसके विवाह के समय का वर्णन करने के साथ ही पुत्री सरोज के निधन के बाद एक पिता के मन की व्यथा और विलाप को प्रकट किया है।
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