सरोज का विवाह अन्य विवाहों से इस प्रकार भिन्न था कि सरोज का विवाह बेहद सरल तरीके से एवं सादगीपूर्ण समारोह में किया गया था।
इस विवाह में अन्य विवाहों की तरह ना तो चमक-दमक थी, ना ही दिखावा था और ना ही शोर-शराबा था। सरोज के विवाह में सारे रिश्तेदारों, मित्रों, संबंधियों, पड़ोसियों किसी को नहीं बुलाया गया था।
इस विवाह में केवल परिवार के कुछ निकटतम लोग ही शामिल हुए थे। सरोज के विवाह में मेहंदी रस्म, महिला संगीत जैसी पारंपरिक रीति-रिवाजों का भी अभाव था, ना ही किसी ने विवाह के मंगल गीत गाए थे और ना ही यहां पर लोगों की भीड़ थी।
विवाह में शांति थी और सादगीपूर्ण तरीके से विवाह संपन्न हुआ था। कवि ने अपनी पुत्री के विवाह में माँ एवं पिता दोनों की जिम्मेदारी निभाई थी।
संदर्भ पाठ :
पाठ ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ – गीत गाने दो मुझे/सरोज स्मृति (कक्षा – 12, पाठ – 2, अंतरा।’सरोज स्मृति’ कविता में कवि ने अपनी दिवंगत पुत्री सरोज को केंद्रित करते अपने पुत्री के साथ अपने संबंधों, उसके विवाह के समय का वर्णन करने के साथ ही पुत्री
आकस्मिक के निधन के बाद एक पिता के मन की व्यथा और विलाप को प्रकट किया है।
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
‘आकाश बदलकर बना मही’ में ‘आकाश’ एवं ‘मही’ शब्द किसकी ओर संकेत करते हैं?
कवि को अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद क्यों आई?